Geet Chaturvedi की किताब पिंक स्लिप डैडी 3 in one combo है।
किताबों और खासकर कहानी की किताबों की सबसे अच्छी बात होती है कि हमें लोग (पात्र) मिलते हैं, जिनमे हम खुद को ढूंढते हैं, उनके जीवन के अलग अलग हिस्सों में अपने जीवन के अलग अलग हिस्से ढूंढते हैं और ये हम हर कहानी के हर पात्र के साथ करते हैं। Geet Chaturvedi इसमें खरे उतरते हैं।
कहानी वही अच्छी लगती है जो कुछ ऐसा कह जाए जो हम तुरंत पकड़ लें – कि यार ऐसा तो मेरे साथ भी हुआ है और साथ में कुछ ऐसा दे जाए जिसे पढ़ कर कहें – कि यार ऐसा काश मेरे साथ होता। तो एक कहानी यथार्थ और सपने के बीच का झूला है और उस झूले को कितनी अच्छी तरीके से बनाया गया है ये लेखक की skill पर निर्भर करता है।
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और इस बार जो लेखक हैं उनकी कविताएँ तो हैं ही गजब पर कहानियाँ और उम्दा। गीत चतुर्वेदी (Geet Chaturvedi) को मैंने कविताओं के जरिए जाना था लेकिन अब जब उनकी कहानियाँ पढ़ी हैं तो वहाँ भी एक कविता ही मिली है। उनकी कहानियाँ कविता हैं – इससे बेहतर शब्द मेरे पास नहीं हैं।
उनकी किताब पिंक स्लिप डैडी पढ़ी है। इसमें उनकी तीन कहानियाँ हैं – गोमूत्र, सिमसिम और पिंक स्लिप डैडी।
और तीनों कहानियाँ अलग अलग genre में हैं और उनसे गीत चतुर्वेदी (Geet Chaturvedi) की diversity का अंदाजा होता है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि एक समय के बाद उन्होंने लिखना इसलिए छोड़ दिया क्यूंकि वो पहले दुनिया के सारे सबसे अच्छे लेखकों को पढ़ लेना चाहते थे और उसके कारण उनके लेखन में जो व्यापकता आई है वो उनकी कहानियों और कविताओं का अलग लेवल का बनाती है।
पहली कहानी है – गोमूत्र।
गोमूत्र पढ़ के मुझे सबसे पहले याद आई – काफ्का (Franz Kafka) की The Trial. लेकिन इससे मैं ये नहीं कह रहा कि ये वैसी कहानी है – ये पूर्ण रूप से भारतीय है लेकिन भाईसाहब क्या अलग लेवल पर पूरी दुनिया पर सेट हो जाती है।
कहानी में satire है- बाजारवाद पर और middle class आदमी की सिचूऐशन पर। कुछ कुछ जगह पर मैं ताली बजा के हँसा हूँ और कुछ जगह पर ऐसे cringe हुआ कि पूछो मत! कैसे बाज़ार हमारे चारों तरफ जीवन के हर हिस्से में शामिल है और उसने हमारे जीवन का कोई भी हिस्सा खाली नहीं छोड़ है उसका बहुत अच्छा उदाहरण है गोमूत्र।
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एक सिम्पल middle class आदमी के नजरिए से कही गई ये कहानी बहुत entertain करती है और बहुत अलग experience है। और सबसे बड़ी बात। इस कहानी की हर लाइन एक कविता है।
और हाँ एक और बात – इस कहानी में किसी भी पात्र का नाम नहीं दिया और आपको उसकी जरूरत भी महसूस नहीं होती। (जानने के लिए पढ़ना पड़ेगा)
इसके कुछ excerpts दे रहा हूँ —
"मैं चैनल बदल देता हूँ, तो वहाँ एक दूसरा बाबा ब्रह्मचर्य के महत्व के बारे में बता रहा है। मुझे दुख होता है, वह डेमो क्यूँ नहीं देता?"
"कई सारे सपने इसी ताक में हैं कि कब मेरी आँख लगे। वे एक साथ मुझ पर आक्रमण करना चाहते थे। मैंने भी ठान ली, नहीं सोना है, तो नहीं सोना है। सपनों की माँ की आँख।"
"हर वह आदमी अमीर होता है, जो खर्च करता है। खर्च करना ही हमारे समय का सबसे बड़ा सच है। भले आपके पास पैसे ना हों, फिर भी आपको खर्च करना चाहिए। इसीलिए हम आपको खर्च करने के लिए पैसे देते हैं। आपको बचत करनी है, तो उसके लिए भी खर्च ही करना होगा।"
"सिस्टम को वही ठीक करते हैं, जो उसमें शामिल होते हैं। बल्कि बाहर खड़ा आदमी गलती पहचान लेता है और बाहर खड़े-खड़े ही भीतर वालों को गलती ठीक करने के लिए कहता है। इसीलिए वह लीडर होता है।
इसीलिए हमारे सारे लीडर भी आम लोगों में इन्वाल्व नहीं होते? वे अगर इन्वाल्व हो जाएंगे, तो समाज की गलतियों को कैसे पकड़ पाएंगे?"
"मैं कहाँ से लाऊं वह निर्धनता, जो अपने बदले में कुछ नहीं मांगती।"
"जरूरी है कि क्या सिद्धार्थ जितनी बार कुछ जीवों को सोता छोड़ घर से निकले, उतनी बार उसे ज्ञान मिल ही जाए?"
"कोई नहीं मानेगा कि दुनिया बहुत खूबसूरत हो सकती थी, पर कुछ लोगों ने उसका खूबसूरत हिस्सा अपनी ओर घुमा लिया है और असंख्य लोगों के चेहरे के पीछे का घुटन - भरा अंधकार और बदसूरती दे दी है।"
अगली कहानी है – सिमसिम।
ये Geet Chaturvedi की लेखनी का ही कमाल है कि इस कहानी का English translation अनिता गोपालन ने किया है और उसे ‘पेन अमेरिका’ ने अवॉर्ड भी दिया है।
ये actually में एक नॉवेल है और इसकी सबसे अच्छी बात है कि इसके हर चैप्टर के शुरू में कभी एक कविता या फिर कहानी से कुछ lines हैं जो उस चैप्टर से रीलैट करती हैं।
और वो कविता और लाइंस पहले से famous writers की हैं और मेरे हिसाब से गीत चतुर्वेदी ने tribute दिया है उन्हे ऐसे। और ये बात बहुत खूबसूरत बना देती है।
कहानी multi-linear narrative में लिखी गई है, यानि पात्रों के हिसाब से चैप्टर हैं और बहुत यूनीक कहानी है। बेसिक थीम मुझे लगा है – generation gap और बाजारवाद young generation के हिसाब से।
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लेकिन ये कहानी गोमूत्र से अलग है – इसमें भावनाओं का मिश्रण इसे बड़ी संवेदना वाली कहानी में बदल देता है। आपको कुछ पत्रों से प्रेम हो जाएगा। दो प्रेम प्रसंग हैं कहानी में जो जीवन के किसी ना किसी हिस्से को जरूर छूते हैं। और इसके पहले चैप्टर का नाम है – मेरा नाम ‘मैं’ है -1. है ना ग़ज़ब।
इसकी कुछ पंक्तियाँ यहाँ दे रहा हूँ –
"नदियों को एक दिन समंदर में जाकर गिरना होता है, लेकिन सड़क कहाँ जाकर गिरती है, कोई नहीं देख पाया। वह कहती, दुनिया- भर की सड़कों को इकट्ठा कर दिया जाए, तो वे उसके बालों का जुड़ा बन जाएंगी।"
"नदी जब सड़क बनती है, तो सबसे पहले अपनी रफ़्तार खोती है। फिर नमी। फिर खुद को खो देती है। ...
सड़क बन जाना नदी के साथ हुई सबसे बड़ी क्रूरता है।"
"कहती, इस कमरे से अभी-अभी कोई निकल कर गया है, बस, ठीक अभी कोई आने वाला है इस कमरे में। यह एक दरवाजे से एक के आने और दूसरे दरवाजे से किसी दूसरे के आने के बीच की स्थिति है। और यही स्थिति हमारे पूरे जीवन की होती है।"
"तुम्हें प्यार करना आता है?
उसके पूछने से पहले ही मैंने बता दिया था, 'नहीं, मैं एक पुरुष हूँ।'
और फिर आती है कहानी – पिंक स्लिप डैडी।
ये एक कहानी नहीं है, ये बहुत सी कहानियाँ हैं और उन सबको इस तरीके से एक कहानी में बाँधना और इस तरीके से नपे तुले शब्दों से लिखना कि किसी भी कहानी कि अपनी identity कहीं भी कम ना हो – ये जादूगरी है और बहुत खूबसूरत जादूगरी है।
एक corporate सेटअप में बंधी ये कहानी आपको इस दुनिया के हर पहलू से मिलवाएगी और आप दुनिया के हर पहलू को अपने भीतर पाओगे – प्रेम, गुस्सा, डर, धोखा, सपने और ना जाने क्या क्या! सब है इसमे और बहुत बहुत बहुत सुंदर कहानी है।
Chekhov’s The Seagull – Some lines
एक ना एक बार इस कहानी को सबको पढ़ना चाहिए। एक मिनट के लिए आपको बोरियत नहीं लगेगी। कहानी का एक एक शब्द ऐसे बांध के रखेगा कि आप आगे पढ़ते ही रहोगे। और हाँ – इसमे कुछ fantasy का element भी है जो पढ़कर ही पता चलेगा।
इसकी सबसे अच्छी बात लगी – पात्रों के नाम। बहुत सुंदर और उनकी कहानी के हिसाब से सटीक।
इस की पंक्तियों की झलक –
"वे कभी किसी को मृत्युदंड नहीं देते, डांट भी नहीं लगाते, बस, उसकी नींद छीन लेते हैं।"
"परमाणुओं के टूटने पर विस्फोट होता है। जब एक क्षण टूटता है, तो कोई ध्वनि नहीं होती।"
"किसी के जीवन का दूसरा विकल्प बनने का अर्थ अपने लिए विकल्पहीनता की एक स्थिति का निर्माण करने जैसा ही होता है।"
"मैं उतना ही थमा हूँ, जैसे एक प्रार्थना हूँ।"
"हर संभव जगह युद्ध के मैदान में बदल जाती है। इस पर भी युद्ध संभव है कि मैंने तुमसे ज्यादा प्रेम किया, तुम उतना क्यूँ नहीं लौटा पाए।"
तो ये कुछ बातें हैं गीत चतुर्वेदी की किताब पिंक स्लिप डैडी से रिलेटेड। अगर आपको पसंद आए और पढ़ना है तो यहाँ जाईए।
अगर पढ़ी तो बताइए, ना पढ़ी हो तो भी बताइए। बाकी पढ़ते रहिए।
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बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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