Nirmal Verma Quotes from Kavve Aur Kala Pani | EkChaupal
कुछ सत्य बिल्कुल अनावश्यक होते हैं, उन्हें कहने, न कहने से कोई अंतर नहीं पड़ता।
कुछ सत्य बिल्कुल अनावश्यक होते हैं, उन्हें कहने, न कहने से कोई अंतर नहीं पड़ता।
पृथ्वी पर
पानी के भविष्य के बारे में सोचना है
बुद्ध के बारे में सोचना…
झूठ सुनहरा था, भूस की तरह, सत्य उसमे काले सांप की तरह घुस गया। हम डर गए। बहुत। इतना डर गए कि लाठी लेकर भूस के ढेर में सांप मारने लगे। सारा घर भूस के तिनकों से भर गया। दीवार, छत, खिड़की, दरवाजे और हम – सब छोटे छोटे भूस के तिनकों के बीच छिप गए। सांप हाथ नहीं आया… रात में थककर सोने पर पैरों पर कुछ रेंगता महसूस हुआ और हम अकड़ गए, हमने डर कर हाथ जोड़ लिए, तभी कानों में फिस्फिसाती सी आवाज़ आई – ‘डरो मत, मैं तुम्हें नहीं काटूंगा। तुम पर अब भी झूठ के तिनके बिखरे हुए हैं। अभी तुम सत्य के काटे से जीने लायक नहीं हुए।’
कहीं जाने के लिए टिकट का होना जरूरी है; वह एक तरह का सिग्नल है जैसे घड़ी का होना, डायरी का होना, कैलंडर का होना – वरना एक रात हमेशा के लिए एक रात रहेगी, एक शहर हमेशा के लिए एक शहर, एक मृत्यु हमेशा के लिए एक मृत्यु;
लोग या तो कृपा करते हैं या खुशामद करते हैं
लोग या तो ईर्ष्या करते हैं या चुगली खाते हैं
लोग या तो शिष्टाचार करते हैं या खिसियाते हैं
लोग या तो पश्चात्ताप करते हैं या घिघियाते हैं
न कोई तारीफ़ करता है न कोई बुराई करता है
न कोई हँसता है न कोई रोता है
न कोई प्यार करता है न कोई नफरत
लोग या तो दया करते हैं या घमण्ड
दुनिया एक फँफुदियायी हुई-चीज़ हो गयी है।
कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि मरने से पहले हममे से हर एक को यह छूट मिलनी चाहिए कि हम अपनी चीर-फाड़ खुद कर सकें। अपने अतीत की तहों को प्याज़ के छिलकों की तरह एक-एक करके उतारते जाएँ – आपको हैरानी होगी कि सब लोग अपना-अपना हिस्सा लेने आ पहुचेंगे, माँ-बाप, दोस्त, पति – सारे छिलके दूसरों के, आखीर की सुखी डंठल आपके हाथ मे रह जाएगी, जो किसी काम की नहीं, जिसे मृत्यु के बाद जला दिया जाता है, या मिट्टी के नीचे दबा दिया जाता है।
बरसों बाद भी घर, किताबें, कमरे वैसे ही रहते हैं, जैसा तुम छोड़ गए थे; लेकिन लोग? वे उसी दिन से मरने लगते हैं, जिस दिन से अलग हो जाते हैं… मरते नहीं, एक दूसरी ज़िंदगी जीने लगते हैं, जो धीरे- धीरे उस ज़िंदगी का गला घोंट देती है, जो तुमने साथ गुजारी थी…
नहीं कृष्ण की,
नहीं राम की,
नहीं भीम, सहदेव, नकुल की,
नहीं पार्थ की,
नहीं राव की, नहीं रंक की..
नहीं तेग, तलवार, धर्म की
नहीं किसी की, नहीं किसी की
घरती है केवल किसान की।
अदना, गरीब, मुफलिस, जरदार पैरते हैं,
इस आगरे में क्या-क्या, ऐ यार, पैरते हैं।
जाते हैं उनमें कितने पानी में साफ सोते,
कितनों के हाथ पिंजरे, कितनों के सर पे तोते।
कितने पतंग उड़ाते, कितने मोती पिरोते,
हुक्के का दम लगाते, हँस-हँस के शाद होते।
सौ-सौ तरह का कर कर बिस्तार पैरते हैं,
इस आगरे में क्या-क्या, ये यार, पैरते हैं॥
और वह प्रेमिका
जिसका मुझे पहला धोखा हुआ था
मिल जाए तो उसका खून कर दूँ!
मिलती भी है, मगर
कभी मित्र
कभी माँ
कभी बहन की तरह
तो प्यार का घूंट पीकर रह जाता।