किताबें और सिनेमा,
पढ़ने और देखने की यात्रा में जो हुआ
उसे बताते हैं।
बस। इतना ही।
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Diary #2 | Main Kaun Hoon
मैं कौन हूँ? क्या इस सवाल से कोई कहानी शुरू हो सकती है। हो सकती है। कहानी की संभावना हमेशा रहती है। जीने की संभावना हमेशा रहती है। कहना छूट रहा है। फिर जो भीतर है वो बाहर कैसे आए? क्या जीभ में थकान भर गयी है। जीने की। भीतर का जीवन देखने की फुरसत…
I am constantly trying to communicate something incommunicable, to explain something inexplicable, to tell about something I only feel in my bones.
— Franz Kafka
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