Piyush Mishra जी को सभी जानते हैं। जिन्होंने भी गुलाल और Gangs of Wasseypur देखी है वो जानते होंगे। वो बहुत ही उम्दा अभिनेता और लेखक हैं। खासकर कविता और गीतों के। उनके गीत आपने जरूर भूले बिसरे गुनगुनाएँ होंगे। चाहें वो आरंभ हो प्रचंड हो या एक बगल में चाँद होगा, एक बगल में रोटियाँ।
वो फिल्मों के लिए बहुत शुरुआत से गाने लिखते रहे हैं। उनकी एक किताब है जिसका नाम है – आरंभ है प्रचंड। इसमें उनके द्वारा फिल्मों के लिए लिखे गए सारे गीतों का संग्रह है। उसको पढ़ा और मन में आया की कुछ ऐसे गीतों को साझा किया जाए जो लोगों ने बहुत कम सुने हैं। और अगर सुने हैं तो पता नहीं था कि पीयूष मिश्रा ने लिखे हैं। इनमे से कुछ पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं।
तो लीजिए…
पीयूष मिश्रा के गीतों से कुछ अनसुनी lines–
गुलाल से कन्फ्यूज़्ड प्रेम का वास्ता
जीवन की राहों पे आना या जाना
बता के नहीं होता है...
जाते सभी हैं मगर जानते ना
कि आना वहीं होता है
खोने की जिद में ये क्यों भूलते हो
कि पाना भी होता है...
गुलाल से ओ रात के मुसाफिर
मुकाम खोज ले तू
मकान खोज ले तू
इनसान के शहर में
इनसान खोज ले तू
ब्लैक फ्राइडे से अरे रुक जा रे बंदे
किसे काफिर कहेगा
किसे कायर कहेगा
तेरी कब तक चलेगी हो
समंदर को बचाना
जरा-सा बाज से तू
तभी बत्तख चलेगी हो...
ब्लैक फ्राइडे से 1993 के धमाकों के बाद – पछतावा
जंग का रंग
सुनहरा समझा
लेकिन बाद में
गहरा समझा
जंग का रंग था काला रे
भरम भांप के...
देसी बम! से आओ याद करें
थोड़ी हँसी है
थोड़े लतीफे
थोड़ा तराना
झटपट रातें...
अंधाधुंध है ये...
जीवन साला
पागल हाथी
उड़ती बुलबुल
चलता घोड़ा
कोई तो रोको...
चक्की से सरपट आया कैसे खोखला ज़माना रे
सबको ये फिक्र है या अब गिरा कि तब गिरा
नौजवान शादी में बूढ़ा शामियाना रे...
जो बन ना सकी से जीने दो
ये आँखें क्यूँ भीगती हैं
ये सपना क्यूँ जागता है
कि ये पल जो बीता पल
आज संग क्यों भागता है...
तो ये थे Piyush Mishra के कुछ अलग और अनसुने गीतों की पंक्तियाँ। बाकी के लिए आप किताब खरीद कर पढिए। तब तक पढ़ते रहिए।
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बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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