एक चिथड़ा सुख - निर्मल वर्मा | बारिश, दिल्ली, सुख और चमत्कार सा कुछ

वो जून के अंत के दिन थे। दो दिन से सिर्फ बादल थे और फिर रात में बरस गए… धीमे से जैसे किसी ने उन्हें नींद से जगाया हो कि उठो तुम्हे बरसना भी है। और जैसे कोई गहरी नींद से उठता है, धीमे धीमे दिन और जागने का आलोक आंख और मन में भरता है ठीक वैसे बरसे।

कुछ चीजें हमेशा के लिए जीवित रह जाती हैं। समय उन्हें नहीं सोखता – वे खुद समय को सोखती रहती हैं।

निर्मल वर्मा – एक चिथड़ा सुख

निर्मल वर्मा कितना गहरा असर करते हैं। उनकी किताब एक चिथड़ा सुख पढ़ी है। कितना सहज है उनके लिए एक एक शब्द लिखना। अपने जीवन को देखता हूं और सोचता हूं कि हर एक दृश्य कितना अधूरा है – निर्मल वर्मा की कहानी में होता तो इसे पूर्णता मिल जाती। ऐसा क्या है उनके शब्दों के भीतर? एक चुप्पी! स्थिर चुप्पी जो इतने धीमे से पड़ोस में आकर उंगली थामकर चलती है कि शरीर और मन का अंग जान पड़ती है।

उनकी लिखाई बारिश है जो झरती है। धीमे धीमे, इतना धीमे कि शुरू में लगता है ये कुछ नहीं है, ये रुक जाएगी पर आस पास की बूंदे इकट्ठा होकर मन, आत्मा, चेतना सब को भिगा जाती हैं। बहुत अंत में फिर बादल फटता है – उनके लिखे में नहीं – मन के किसी चुप कोने में।

मैं सोचता हूँ, वह एक सुखी शाम है, सुख जो अचानक चला आता है, बातों के बीच, बोतल उठाने और गिलास रखने के बीच, हँसी के टुकड़ों पर।

निर्मल वर्मा – एक चिथड़ा सुख

ऐसा लिखना मुमकिन है? क्या सहा है उन्होंने? ऐसे कई सारे सवाल मन में घर कर जाते हैं। सोचता हूं वो अब यहां मेरी जगह होते, यूं बारिश की बौछार की धीमी आवाज़ सुन रहे होते तो क्या देखते?? उनके देखने में और मेरे देखने में असीम अंतर होगा – किन शब्दों या वो कौनसी चुप्पी है जिससे ये अंतर पाटा जा सकता है???

दिल्ली अब कभी वैसे नहीं घूम सकूंगा जैसे घूमता था। किताब के बाद अब निर्मल वर्मा हर वक़्त साथ रहेंगे – कैनॉट प्लेस अब और अजनबी हो गया है पर एक धागा बांधा है – जितना अनजान हुए उतना ही धागा मजबूत होगा- ये जादू है निर्मल वर्मा का। उनकी किताब में मंडी हाउस पढ़ा – ऐसा लगा मैंने कभी मंडी हाउस देखा ही नहीं – ये मंडी हाउस कहां है?? क्या सिर्फ उनकी किताब में???

कुछ रिश्ते रेगिस्तान से होते हैं – जिन्हे हर रोज लांघना पड़ता है।

निर्मल वर्मा – एक चिथड़ा सुख

कुछ जगहों की प्यास अब उस जगह से ज्यादा उस जगह के बारे में पढ़कर मिटेगी – ऐसा विश्वास सा हो रहा है। इतने सारे सच। और सब fiction में। हहा। ये जादू नहीं तो क्या है?? और जादूगर – निर्मल वर्मा।

नमन है।

एक चिथड़ा सुख कहानी है सुख की – बिट्टी और उसके कज़िन की आँखों से और उनके आस पास के लोगों से। कहानी के बारे में सिर्फ इतना कि हर कोई सुख के पीछे भाग रहा है और मिलता किसे है? और दूसरा – सब इतना सुंदर है कि उसके बारे में कुछ लिखना उसे मटमैला कर देगा।

तो बस किताब से कुछ quotes यहाँ दूँगा – मन करे तो किताब जरूर पढ़ें – कुछ बदलेगा भीतर। बहुत सुख मिलेगा।

एक चिथड़ा सुख के कुछ Quotes

कहीं जाने के लिए टिकट का होना जरूरी है; वह एक तरह का सिग्नल है जैसे घड़ी का होना, डायरी का होना, कैलंडर का होना – वरना एक रात हमेशा के लिए एक रात रहेगी, एक शहर हमेशा के लिए एक शहर, एक मृत्यु हमेशा के लिए एक मृत्यु;

वह अब चल नहीं रहा था। वह ठहरा भी न था। वह पानी के नीचे था, जब ऊपर सबकुछ बहता जान पड़ता है और वह उस ‘बहने’ को रोक नहीं सकता था। वह उसके सर के ऊपर से गुज़र जाता था, और वह उसे पकड़कर चीख नहीं सकता था, देखो, यह मैं हूँ, मैं यहाँ हूँ; वह बूढ़ा होता जाएगा, और वह उसके ऊपर बहता रहेगा; किन्तु उसे रोका जा सकता है, यह वह जानता था।

घर की एक आवाज में कितनी तहें जमी होती हैं, जिन्हे बाहर का आदमी सुनकर भी कभी नहीं समझ पाता… बरसों से जमी परतें, जो सिर्फ उनके लिए खुलती हैं, जो उनके भीतर जीते हैं।

बिट्टी के दोस्तों में सिर्फ वही एक थे, जिन्हे देखकर ना दुख समझ आता था, न सुख। उन्हे देखकर यह नहीं लगता था, कि वे कुछ ढूँढ रहे हैं, उलटे लगता था, उन्हे कोई ढूँढ रहा है – और वह अभी तक बचे हैं।

कुछ लोगों को अकेले छोड़ देना चाहिए। अगर वे उन्हें पूरी तरह अकेला छोड़ दें, तो वे आखिर तक बचे रहते हैं।

घर के सन्नाटे में हमेशा कुछ भरा रहता है – एक पुराने एटिक की तरह – पुरानी गंध, टूटी आवाजों के चीथड़े, बंद घड़ियाँ! वे सब दरवाजों के पीछे थे, कोनों में दुबके हुए, चुप्पी के कोनों को कुतरते हुए।

वे चुप बैठे थे, लेकिन लगता नहीं था कि वे चुप हैं और उसे यह बहुत विचित्र लगा कि वह उन्हे सुन रहा था, जबकि वे कुछ भी नहीं बोल रहे थे और तब उसने सोचा, शायद यह प्रेम है, एक दूसरे को सुन पाना, चाहे उसमें कितना ही संदेह और निराशा क्यूँ ना भरी हो।

क्या वह अभी भी वहीं खड़ी है? क्या ऐसा हो सकता है कि जब मैं बरसों बाद वापिस लौटूँगा, वह वहीं खड़ी होगी, एक लंबी छरहरी लड़की, काली शाल में लिपटी हुई। नहीं, यह असंभव है, मैंने सोचा। लोग पेड़ नहीं हैं जो एक जगह खड़े रहें, और पेड़ भी मुरझा जाते हैं – the woods decay and the woods decay – मुझे बरसों पहले पढ़ी हुई एक लाइन याद आती है और तब मुझे काफी अजीब लगा कि जंगल भी जरजरा जाते हैं, बूढ़े हो जाते हैं, झर जाते हैं…।

और वह रोना नहीं था – क्यूंकि रोना वर्तमान में होता है, जबकि बिट्टी के आँसू किसी पुराने रोने के बासी अवशेष थे, जो इस क्षण बाहर निकल आए थे, बह रहे थे और वह उन्हे बहने दे रही थी।

मुझे काफी हैरानी होती थी कि पहली बार मैंने कितनी चीजों को अनदेखा कर दिया था, दरवाजे का खुलना, एक खाली दीवार, किसी लड़की का खिड़की से बाहर झांकना, घड़ी का डायल, मुझे यह चीज काफी भयंकर जान पड़ती – देखकर भी ना देख पाना.


ये थे निर्मल वर्मा की किताब एक चिथड़ा सुख से जो अनुभव हुआ उसके बारे में और उसके कुछ quotes. कुछ और भी हैं जो आगे की posts में डालूँगा। मन करे तो नीचे दिए लिंक से किताब मँगा सकते हैं। तब तक पढ़ते रहिए।

और पढिए – 

Beyond The Horizon | Play

तीन एकांत – निर्मल वर्मा | एकांत का सुख है

Similar Posts

आइए, बरगद के नीचे बैठकर थोड़ी बातचीत हो जाए-

4 Comments