सिनेमा। बहुत ही ग़ज़ब चीज है। खासकर तब जब वो आपको entertain तो करे ही साथ में कुछ ऐसी चीजें दिखा जाए तो एक आयाम से निकलकर दूसरे में पहुँच जाए। और हम लोग कहानियाँ सुनते, पढ़ते और देखते ही क्यूँ हैं – जिससे की उस कहानी की चीजों को अपनी ज़िंदगी से जोड़ कर अर्थ निकाल सकें। और Eeb Allay Ooo! इस सिनेमा की कसौटी पर खरी उतरती है।
मूवी वैसे 2019 में कुछ festivals में release हो चुकी है और बहुत अच्छे reviews के साथ। फिर अभी Jio Mami Film Festival में भी खूब तारीफ हुई – international और national दोनों तरफ से। अभी youtube पर कुछ दिन पहले एक खास पहल के लिए 24 घंटे के लिए फ्री में available थी। और भाईसाहब देखने के बाद जो goosebumps महसूस किये हैं।
कुछ कहानियाँ इतनी साधारण तरीके से कही जाती हैं कि बहुत भीतर तक जाती हैं। वैसी ही कहानी है – Eeb Allay Ooo!
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Eeb Allay Ooo! Story
अंजनी नाम का एक लड़का दिल्ली आता है काम की तलाश में। पढ़ाई सिर्फ 11 th तक की है और कोई खास skill भी आती नहीं है। तो उसके जीजा जी जुगाड़ करके उसे काम दिलवाते हैं – ‘सरकारी’। दिल्ली के कुछ खास इलाकों से बंदरों को भगाने का काम।
अब वहाँ पर एक लड़का है महिंदर जो कि एक्सपर्ट है इस काम में। वो आवाज निकालता है Eeb Allay Ooo जिसका खास अर्थ है जिससे बंदर भाग जाते हैं। पर अंजनी वो आवाज ठीक से नहीं निकाल पाता और फिर दूसरे तरीके ढूँढता है। साथ में दिक्कत ये है कि अंजनी बंदरों से डरता बहुत है।
उधर इसके parallel उसके दीदी और जीजा कि कहानी चलती है, जहाँ जीजा जी रात में एक adventure park के security गार्ड हैं और उन्हे नये नियम के according milte हैं हथियार। अब कैसे वो इनकी ज़िंदगी में change लाता है वो देखने वाला है।
अंजनी कैसे अपनी नौकरी बचाता है – एक तो उसका मन नहीं, ऊपर से उसका कोई तरीका काम नहीं करता, वो एक बार लंगूर के फोटो लगाता है जिससे बंदर भाग जाते हैं लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर फोटो लगाना मना है। फिर नौकरी को खतरा।
एक बार वो खुद लंगूर के कपड़े पहन कर बंदरों को डराता है लेकिन उससे दूसरे लोगों को दिक्कत है। फिर नौकरी को खतरा। वो महिंदर से बार बार कहता है कि आप कलाकार हो – तो महिंदर बताता है कि उसके यहाँ 7 पुश्तों से ये काम हो रहा है।
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खैर, मूवी की सबसे खास बात है कि कैसे ये बहुत बेसिक human बात करती है। कैसे आप अपने आस पास के जीवन से कहानी को जोड़ने लगते हो और कैसे बहुत बेसिक सवाल हमारे सामने आ जाते हैं।
एक सीन में नये हथियार का rule बताया जाता है security गार्ड्स को। । कहा जाता है कि क्यूंकि crime rate बढ़ रहा है, चोरी, डकैती, खून, गुंडागर्दी बढ़ रही है तो बचने के लिए हथियार जरूरी हैं। और अगले ही फ्रेम में एक जगह का बोर्ड दिखता है जिस पर लिखा है – बंदरों से सावधान। ये आप पर हमला कर सकते हैं। ये जानलेवा हो सकता है। और इतना काफी है दिमाग गुदगुदाने के लिए।
एक सीन में republic day यानि 26 जनवरी की परेड चल रही है। बहुत से बंदर भगाने वाले आस पास हैं जिससे बंदर ना आ जाएँ। और फिर सामने से बंदरों की ही झांकी निकलती है और सब ताली बजाते हैं। ये अपने आप में बहुत ironic है। अंजनी की नजरों से देखने पर हँसी आती है। लेकिन तुरंत कुछ खयाल भी आते हैं।
नौकरी देने से पहले documentary दिखाई जाती है बंदरों पर जिसमे कहा जाता है कि – पहले इंसानों ने इन्हे भगवान का दर्जा दिया। खाने को प्रसाद और दूसरी चीजें दीं। तो इनका हौसला बढ़ गया। इन्हे लगता है कि इन्हे खाना खाने के लिए खाना ढूँढने की जरूरत नहीं है। तो ये दबंग हो गए हैं और अपनी मर्जी से कहीं भी घुसकर खाना खाने लगते हैं। और अगर थोड़ा सा भी aware हैं देखने वाले तो तुरंत समझ आएगा कि ये बंदरों की बात नहीं हो रही है।
एक जगह पर एक आदमी restricted एरिया में बंदरों को केले और प्रसाद खिला रहा होता है। जिससे उसका काम बन जाए क्यूंकि बंदर हनुमान जी के प्रतीक हैं। अंजनी आकर उन्हे मना करता है। आदमी powerful है – तुरंत कहता है अभी तेरे contractor से बात करके तुझे नौकरी से निकलवाता हूँ। तो अंजनी डर जाता है।
इसको थोड़ा सा अपने जीवन से जोड़ के देखिए – एक image बनेगी और एक सवाल आएगा सामने।
और ending. भाईसाहब ending में जो goosebumps खड़े होंगे वो बहुत अद्भुत है।
सिनेमा शायद इसलिए discover किया गया था कि एक कहानी दिखाई जाए जो entertain करे, कुछ ऐसा दिखाए जो आस पास हो रहा है और कुछ सवाल छोड़ जाए। और ये मूवी इसका perfect example है।
कहानी गुदगुदाती रहेगी लेकिन साथ में कुछ सवाल छोड़ देगी। direction बहुत ग़ज़ब है और इसके लिए प्रतीक वत्स को सलाम। cinematography कुछ अलग है और सुंदर है। focus का बहुत अच्छे से इस्तेमाल किया गया है। और acting – शरदुल भारद्वाज बहुत ग़ज़ब तरीके से अभिनय करते हैं – अंजनी वही हैं – ये बहुत अच्छे से लगता है। बाकी सारे कलाकारों ने भी बहुत अच्छा काम किया है।
तो अगर कुछ बहुत अच्छा देखना है जो refreshing है, unique है और बहुत funny है तो ये मूवी देखिएगा।
तब तक देखते रहिए। पढ़ते रहिए।
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बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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