Firaq Gorakhpuri Top Quotes | EkChaupal
इस गुंडा समय में न मैं लाठी होना चाहता हूँ
न चाकू न पिस्तौल
इस गुंडा समय में मैं अपने समय का
एक गुंडा नहीं होना चाहता हूँ
इस गुंडा समय में न मैं लाठी होना चाहता हूँ
न चाकू न पिस्तौल
इस गुंडा समय में मैं अपने समय का
एक गुंडा नहीं होना चाहता हूँ
Jose Saramango के उपन्यास Blindness में जैसे ही सब अंधे एक जगह इकट्ठे होते हैं और जानते हैं कि सारे नियम जिसमें वो शुरू से रहते आए हैं पीछे छूट गए हैं, सबके भीतर का सच बाहर आता है। अंधे हैं तो सब अंधे हैं। कोई किसी को नहीं देख सकता। कोई किसी का सच नहीं छू सकता। जब देखे जाने का डर हट जाता है तब हर कोई समाज और सभ्यता के नियम किनारे कर देता है। यहाँ तक के इंसान होने के जितने नियम हैं सब किनारे हो जाते हैं।
उनका नाम William Stoner था। देखा जाए तो उन्होंने कोई महान काम नहीं किया बस अपने प्रेम को पूरा करने में जीवन लगा दिया। उनके पूरे indifference के बीच कहीं बहुत कोमल प्रेम है जिसे वो हमेशा बचा कर रख लेना चाहते थे। कैसे होते हैं वो लोग जो कुछ नहीं कहते, बस सहते रहते हैं, उन्हें हार से फरक नहीं पड़ता और जीत चाहिए नहीं वो बस जीना चाहते हैं? क्या मैं Stoner को छू सकता हूँ। मैं उनका जीवन अपने शरीर पर ओढ़ लेना चाहता हूँ। उन्होंने जो नहीं कहा और जो भी जिया सब।
क्यूंकी जहां से मैं देख रहा हूँ – हम आज इस समय ऐसे हैं (जो कुछ भी अच्छा और बुरा है) क्यूंकी हमने कुछ खास कहानियाँ बार बार कही और सुनी हैं। और भविष्य भी बनेगा तो इस बात पर हम कौनसी कहानी सुनने और कहने की इच्छा रखते हैं। तो इस मामले में मुझे Laal Singh Chaddha बहुत पसंद आई है। तुम भी एक बार देख लेना।
रात का एक बज रहा है। मैंने बस अभी निर्मल वर्मा की “लाल टीन की छत” (Laal Tin Ki Chhat) पढ़कर बंद करी है। विश्वास नहीं होता कि यह कहानी खतम हो गयी। मैं कुछ देर चुप बिस्तर पर ही पड़ी रही। किताब मेरी छाती और होठों के बीच किसी पुल सी लेटी हुई थी, मेरे होठों के गीलेपन से उसके किनारे भीग रहे थे और मेरी हर साँस के साथ वो ऊपर और नीचे उठ रही थी। मैं बिस्तर पर पड़ी कुछ देर तक बस गहरी साँसें लेती रही।
And this book makes us realise ki it’s just stories.. different stories with the same names.. or other stories with different names. Stories that keep on changing shape as they move on to different places, to different characters.. a single story travelling from one book to another!
अच्छा उपन्यास है। बहुत अच्छा है। बहुत दिनों बाद कुछ हल्का पढ़ा है। जो बोझिल नहीं लगता। साफ पानी में गोते जैसा। जिसमें बहे जाना अच्छा लग रहा है। उनके पात्र वैसे ही हैं जैसे हम लोग हैं। अपने में उलझे, जीवन से सवाल करते हुए, अच्छे बुरे के बारे में, रोज़मर्रा की politics, दोस्ती, परिवार से जूझते हुए। Career और पैसे की जलन और उलझनों के बीच एक सुंदर संसार का सपना लिए।
बहुत मासूमियत भरी कहानी है Of Mice and Men की। शुरू में पता चल जाता है कि अंत में क्या होगा। पर तब भी पढ़ते गए ये सोचकर कि बदल जाएगा। ठीक यही पात्रों के साथ है। उन्हें पता है कि आगे क्या होगा, पर किसी वजह से वो दूसरी संभावना की आशा में जीते हैं और अंत में हार जाते हैं। यहां तक कि इस बात को स्वीकारते भी हैं।
लेकिन इसे देखने के बाद लगा कि असल मायनों में तो यह हिंदी मेनस्ट्रीम सिनेमा की पहली lgbtq फ़िल्म है। क्यूँकि यह पहली थी जो सच में उनके के जीवन के बारे में थी। उनकी इच्छाओं, उनकी लड़ाइयों और उनके समझौतों को थोड़ा करीब से देख पाने का एक मौका। उनकी नज़र से।
कोई कहता है There are only few specks of time where everything makes sense और मैं इस फ़िल्म को बनाने वालों को शुक्रिया कहती हूँ आँसुओं के बीच। साथी यह फ़िल्म जब अपने अंतिम क्षणों में होती है तो लगता है यह वही सब बातें हैं जो हम जानते हैं हमेशा से सुनते हैं लेकिन फिर भी फिर भी हमें उन्हें फिर से अलग अलग ज़रिए से एक पूरी यात्रा करके दोबारा सुनना ज़रूरी होता है अलग अलग कॉन्टेक्स्ट में जिससे हर बार वही अर्थ किसी नए तरीके से हमें मिलता है… वो क्षण when it all makes sense।