सैयद अकबर हुसैन उर्फ़ अकबर इलाहाबादी (Akbar Allahabadi) एक भारतीय उर्दू कवि थे. वो व्यंगाताक्म्क शायरी में सर्वाधिक पढ़े जाने वालो शायरों में से एक है। इनकी शायरी पढ़ने वालों को उर्दू पढ़ रहे हो लोगों को बहुत प्रेरणा मिलती है। आप की शायरी उर्दू साहित्य में बड़ा योगदान है।
इस शेर में अकबर जी किसी की तारीफ़ कर रहे है या शिकायत कर रहे है ये वही जानते है की कोई किसी की जान भी ले लेता है तो महफ़िल में बात नहीं होती और हम थोड़ी सी अंगड़ाई भी लेते है तो बदनामी होती है।।
अकबर जी कह रहे है की जुदाई में हो सकता हो कोई कभी मर गया हो। लेकिन मै जिस दिन से उससे जुदा हुआ हूं मुझे तो ठीक से नींद भी नहीं आती।
यहां हाथ फैलाने के दर ख़ुदा का घर बताया गया है जहां से मांगने से कोई ग़लत बात नहीं ना कोई सवाल जवाब ना कोई हीेल हुज्जत।।
इश्क़ को कच्चा बताया है अकबर जी ने,
अक्ल लगती है तो इश्क़ नहीं हो पाता। इश्क़ को दिमाग या अक्ल की जरूरत नहीं है।
कोई लड़की शर्मा के मुस्कुरा दे या कोई अदा से घायल करदे, खूबसूरत मोहतरमा के लिए कितना आसान है बिजली गिरा देना।
मैंने इज़हार कर ही दिया आज आखिर, उसने सुना और हसकर बोला इश्क़ के आलावा आप को आता क्या है।
और ये शेर, किसी की पहचान बस इतनी सी है कि दिमाग से समझने की कोशिश करो तो कभी समझ नहीं पाओगे उसे केवल मोहब्बत से समझा जा सकता है।
जब भी मै शिकायत करता हूं ख़ुदा से अपनी हालत की, जवाब आता है अपने कर्म देखो फिर शिकायत करना।
अगर आपको अच्छे लगे हों तो इनकी किताबें अभी पढनी शुरू कर दीजिये.
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बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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