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Chekhov’s The Seagull – Some lines

Chekhov के नाटक The Seagull पढ़ते हुए ये कुछ पंक्तियाँ पसंद आईं हैं –

 

अच्छे साहित्य में सवाल नए या पुराने तरीकों या रूपों का नहीं है, बल्कि विचारों का है जो लेखक के हृदय से स्वतंत्रता से निकले हों, बगैर उसके सोचे कि उनका रूप क्या होगा।

– चेखव – नाटक  – द सीगल 

 

चेखव का साहित्य अच्छे साहित्य में गिना जाता है और उन्होंने अपने समय में साहित्य का रूप बदल भी दिया था। तो क्या अच्छे साहित्य के लिए विचार सबसे पहले गिने जाने चाहिए और उनका रूप, रंग और शैली; ये सब बाद मे?

मानव कौल से जब National School of Drama में पूछा गया था कि आपको कभी डर नहीं लगा कि आप गलत लिख दोगे जो मापदंडों पर खरा नहीं उतरेगा? तो उन्होंने जवाब दिया – “देखिए क्यूंकि मुझे लिखना आता ही नहीं है तो मैंने कभी सही या गलत रूप के बारे मे सोचा ही नहीं। जिन्हे लिखना आता है वो इसकी फिक्र करें।”

और जिस किसी ने भी मानव कौल को पढ़ा होगा वो जानेगा कि उनकी लिखाई में विचार यानि कि thoughts कैसे बहते हैं आराम से freely. और उनका रूप कुछ अनोखा है जो आज से पहले मैंने तो नहीं देखा। तो क्या इसकी पुष्टि इससे नहीं हो जाती कि अच्छे साहित्य में विचार सर्वप्रथम होने चाहिए? 

मानव कौल का लेख जो ना कविता है और ना कहानी- बाल्टी 

 

आपकी क्या राय है? आइए संवाद करते हैं। 

 

 

2 responses to “Chekhov’s The Seagull – Some lines”

  1.  Avatar
    Anonymous

    मैं इससे पूरी तरह से सहमत हूँ एक लेखक को अपने विचारों बिना किसी फिल्टर के सबके समक्ष रखना चाहिए नाकि उसमें सामाजिक परिवेश के हिसाब से कोई बदलाब किया जाए। हालांकि यर बहुत ही कठिन और साहस पूर्ण कार्य है पर लेखनी का सही अर्थ भी यही है।

    1. arun Avatar

      लेकिन अगर उसके विचारों को नकारा जाए तब?? तब क्या रूप रंग जरूरी नहीं हो जाता??

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