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Laal Tin Ki Chhat | Nirmal Verma | EkChaupal

Laal Tin Ki Chhat | Nirmal Verma | EkChaupal

Laal Tin Ki Chhat (लाल टीन की छत) निर्मल वर्मा का 1997 में आया उपन्यास है। ये उपन्यास एक लड़की काया के बारे में है जो उम्र के ऐसे पड़ाव पर है जब सब बदलता है। किताब amazon पर खरीद सकते हैं।

 

रात का एक बज रहा है। मैंने बस अभी निर्मल वर्मा की “लाल टीन की छत” (Laal Tin Ki Chhat) पढ़कर बंद करी है। विश्वास नहीं होता कि यह कहानी खतम हो गयी। मैं कुछ देर चुप बिस्तर पर ही पड़ी रही। किताब मेरी छाती और होठों के बीच किसी पुल सी लेटी हुई थी, मेरे होठों के गीलेपन से उसके किनारे भीग रहे थे और मेरी हर साँस के साथ वो ऊपर और नीचे उठ रही थी। मैं बिस्तर पर पड़ी कुछ देर तक बस गहरी साँसें लेती रही। मैंने कितनी ही बार बीच में चाहा था कि यह किताब कभी खतम ना हो। मैं ऐसा ही विश्वास करने लगी थी कि यह कहानी अंनत है, मैं जब चाहे इसपर लौट सकती हूँ और जब तक मैं पढ़ती रहूँगी यह चलती रहेगी। मैं काया को बड़ा होते हुए देखती रहूँगी। बीच में कुछ दिनों मैंने इसे छुआ भी नहीं था, जैसे जान बूझकर मैं इसे अपने पास रोके रख लेना चाहती थी। काया की कहानी मैं जितनी पढ़ती, मुझे उतनी वो अपने बारे में लगती। लगता ठीक अभी इसी सब से तो मैं गुज़र रही हूँ! काया अकेली नहीं है, और शायद मैं भी।

यह निर्मल वर्मा की अब तक कि सबसे निजी और सबसे करीबी कहानी बन गई है मेरे लिए। मैंने इसे बहुत धीमें धीमें रिसने दिया है अपने भीतर….. जब इसे पढ़ रही थी तो पहला खयाल यह आया था कि काया और छोटे.. इन दोनों बच्चों को इस तरह इतना अकेला नहीं होना चाहिए। जिस तरह से यह दोनों पहाड़ों के सन्नाटे में लामा की एक आहट का इतंज़ार करते हैं, रात में खटखटाते दरवाज़ों को सुनते हैं.. यह इंतज़ार, यह अकेलापन और गिन्नी.. इस सब के लिए यह बहुत छोटे हैं। मैं कहानी की शुरुआत में ही इन्हें बचा लेना चाहती थी, किसी ऐसी सुरक्षित जगह छिपा देना चाहती थी जहाँ दोनों इन शब्दों की छाया से बहुत दूर हों।

काया मेरी तरह बड़ी हो रही है, एक उम्र से दूसरी उम्र तक पहुँचने के अँधेरों में जंगल में अकेली टहलती रहती है। और मृत्यु। उसने पहली बार जीवन में मृत्यु देख ली है, ठीक मेरी तरह। जिस तरह मैंने जब उसे पहली बार अपने घर में देखा था तो उसकी छाया से दूर आने में मुझे महीनों, लगभग साल और उससे भी ज़्यादा लग गया था। एक लंबी सड़क मुझे अपने ही भीतर पार करनी पड़ी थी ठीक वैसे ही वह भी अभी उस सड़क को पार कर रही है। आधी किताब पढ़ने के बाद मैं कुछ दिनों तक बहुत अकेले में कभी कभी कहती थी कि यह काया के बड़े होने की कहानी है। मैं महसूस कर सकती थी उसकी खाल को उससे बार बार खिंचते हुए, चिरते हुए, अलग होकर वापिस उससे चिपकते हुए। इस सब की पीड़ा जो निर्मल वर्मा ने अपने हर एक शब्द में पिरोई हुई है….यह कहानी कोई और नहीं लिख सकता था सिवाय उनके। मैं शुक्रगुज़ार हूँ आपके होने की, एक पूरी उम्र.. एक ऐसी चीज़ आपने मुझे दी है जिसके मेरे पास होने का जीवन भर एक हल्का आश्वासन रहेगा भीतर…. कि यह सबसे मुश्किल समय खोया नहीं है मेरे भीतर, मैं इसे इस कहानी में छू सकती हूँ दोबारा…… यह समय जब सारा कुछ इतना पास है कि हर एक साँस में भीतर कुछ रगड़ता है, छिलता है और सारा कुछ इतना दूर है कि हाथ बढाने पर बस गहरा अकेलापन और खालीपन ही हाथ लगता है।

एक लड़की के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उम्र – जिसमें उसकी आस्था, विश्वास, चाहना, अकेलेपन, स्वार्थ, पीड़ा.. और ना जाने कितनी चीज़ों का एक सैलाब भीतर उमड़ता रहता है और देह के भीतर बाहर सब कुछ बदल रहा होता है….. यह सब निर्मल वर्मा ने जिस कोमलता, समझ और संवेदना के साथ लिखा है, यह मैंने कभी सोचा भी नहीं था। ऐसा लग जैसे वो अपने ही भीतर के दूसरे रूप को, स्त्रीत्व को, छू रहे हों.. उसकी खाल में घुसकर एक ऐसी उमर में उसको लिख रहे हों जब वो खुदको ही टटोल रही हो, अभी तक खुद से पूरी तरह मिली ना हो, उस मिलने की सबसे पहली शुरुआती पीड़ाओं को अपने ऊपर सह रही हो। वो काया है। भीतर और बाहर। सारा कुछ उसके बीच से होकर गुज़र रहा है अभी, वो ट्रैन की पटरी पर खड़ी है, इंतज़ार कर रही है….।

शुक्रिया यह कहानी लिखने के लिए। यह मेरे लिए बहुत निजी है।

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Laal Tin Ki Chhat Quotes-

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