Bhonsle फिल्म भोंसले के बारे मे नहीं है। ये पहला thought था जो मेरे मन में आया। ये हमारे बारे में है और हमारे आस पास जो घट रहा है उसके बारे में। और भाईसाहब ये तोड़ देगी, कतई आत्मा, मन जो कुछ सोचा है वो सब बिखेरकर आपको तोड़ देगी। इतनी ग़ज़ब और खूबसूरत फिल्म है।
फिल्म में मनोज बाजपेयी हैं तो ऐक्टिंग तो शानदार होगी ही और बहुत सुंदर है। पूरी फिल्म में उनकी presence तो है लेकिन dialogues मुश्किल से टोटल 10 मिनट के होंगे। बाकी टाइम सिर्फ वो इंसान है, उसकी चुप्पी है, उसकी आँखें हैं, उसकी बॉडी है जो आस पास के समाज को रिफ्लेक्ट करती है।
कहानी कह लो इतनी साधारण है कि अंदर तक झिंझोड़ देती है। एक एक फ्रेम इतना सटीक और पक्का है कि मैं तो भईया नजरें नहीं हटा पाया।
भोंसले देख के सबसे पहले respect आई director और राइटर के लिए जिनका नाम है – देवाशीष मखीजा।
मतलब पहला सीन और भोंसले अपनी constable की वर्दी उतार रहा है और उसके बीच के frames में गणेश जी की मूर्ति पर पेंट चढ़ता है, भोंसले बेल्ट उतारता है, गणेश जी की मूर्ति पर कमरबंद बँधता है। भोंसले शर्ट उतारता है, गणेश जी की मूर्ति पर कपड़ा डाला जाता है। और ये जो महसूस कराएगा ना कि भाईसाहब ये साधारण फिल्म नहीं है।
एक जगह पर पूरा transition दिखाया है कि भोंसले जैसे जैसे उम्रदराज होता जाता है उसके आस पास की चीज वैसी ही जर्जर होती जाती है। उसके बुढ़ापे के साथ ही वर्दी पर धूल बढ़ती जाती है, बर्तन काले पड़ते जाते हैं, उसकी कमरे की छत टूटती रहती है, रेडियो काम करना बंद कर देता है। और ये देखना बहुत कमाल है – कि बात को ऐसे भी कहा जा सकता है।
भोंसले जिस चाल में रहता है उसका नाम है चर्चिल चाल और वहाँ महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों के लोग एक साथ रहते हैं। वहीं एक टैक्सी वाला है जो पोलिटिकल लीडर बनना चाहता है उसके लिए किसी को बचाना जरूरी है तो वो महाराष्ट्र को बचाता है – ये कहके कि इस बार गणपति की स्थापना सिर्फ मराठी लोग करेंगे, दूसरे राज्य के नहीं। इसमें वो बार बार भोंसले को लेने की कोशिश करता है लेकिन वो इन चीजों से बिल्कुल दूर हैं। बस एक बूढ़े की तरह देखते रहते हैं।
चाल में आए दिन बवाल होता है racism को लेकर और एक फ्रेम में भोंसले के बारे में डॉक्टर कहता है कि brain tumour है, अगर जल्दी ही operation नहीं किया गया तो मर जाएंगे। और उसके अगले फ्रेम में भोंसले गणेश जी की मूर्ति के सामने बैठा होता है और तब मन में आता है – बात भोंसले के brain tumour के बारे में नहीं है।
फिल्म में जो parallel बनाए हैं ना वो बहुत सुंदर हैं। और यही शायद इस फिल्म को इतना खूबसूरत बनाती हैं – भोंसले retired है और अपनी सर्विस बढ़वाना चाहता है। वहीं जो पोलिटिकल लीडर वाला बंदा है – विलास, वो उस एरिया के बड़े पोलिटिकल लीडर का हुक्म बजाता है। विलास चाहता है कि उसे काम करने दिया जाए, इज्जत मिले, पर वो पोलतिकल लीडर विलास से मिलना नहीं चाहता, उधर भोंसले के बड़े अफसर उससे मिलना नहीं चाहते। और तब एक दम से मन मे आता है – दोनों एक ही हैं और दोनों अपने survival के लिए लड़ रहे हैं – बस तरीके अलग हैं।
एक जगह पर भोंसले चाल में रहने वाले छोटे बच्चे के साथ चाल की दीवार पोतते हैं जिस पर उसी बच्चे से जबरदस्ती कालिख फिकवायी गई होती है। उस दीवार पर मराठा मोर्चा लिखा हुआ था। तब भोंसले उस बच्चे को पेंट घोलना, उसे पोतना सिखाते हैं। और तब मन में आता है कि जब तक बुजुर्ग जिन्होंने सब देखा है वो बच्चों को नया रंग चढ़ाना नहीं सिखाएंगे ये बच्चे दिशाहीन रहेंगे। और ये इतना ग़ज़ब लगा कि ये बात कितने effective तरीके से कही गई है। और सबसे बड़ी बात – चर्चिल चाल की दीवार को एक मराठी बुजुर्ग और एक बिहार के छोटे बच्चे ने मिलकर नया रंग दिया।
Climax बिखेर देगा। लेकिन उसके एंड में जो parallel जोड़े हैं – भोंसले और गणेश भगवान की मूर्ति के बीच। वो बहुत सुंदर हैं। खून के फ्रेम के बाद आता है गणेश भगवान की मूर्ति का लाल हाथ, भोंसले जमीन पर पड़ा है और गणेश भगवान की मूर्ति रेत में धँसी हुई है। पूजा, अर्चना, नाचने गाने, मन्नत मांगने के बाद भगवान को ऐसे नकार कर छोड़ दिया है जैसे उसका अस्तित्व ही नहीं। और ये सब जो असर करेगा ना!
बहुत सुंदर और बहुत जरूरी फिल्म है – भोंसले। शुरुआत में धीमी लग सकती है अगर ऐसे सिनेमा की आदत नहीं है पर तब भी प्लीज देखो- ये फिल्म आने वाले सालों में जो भीतर कुरेदेगी वो बेहद जरूरी है। और हाँ फिल्म देखते हुए घुटन महसूस होगी क्यूंकि director ने cinematography का use intentionally वैसा किया है।
तो अगर कुछ बहुत सुंदर और बहुत बहुत बहुत जरूरी देखना है तो भोंसले देखिए। ये फिल्म हमारे बारे में है और अपने बारे में कुछ बातें जो जाननी ही चाहिए , है ना!
Bhonsle – Available on Sony LIV
तब तक देखते रहिए।
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बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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