Cheepatakadumpa : फटी आँखें और एक खेल | Devashish Makhija

Cheepatakadumpa : फटी आँखें और एक खेल | Devashish Makhija

लगभग तेईस मिनट की एक शॉर्ट फिल्म है Cheepatakadumpa नाम से देवाशीष मखीजा की। ये देवाशीष मखीजा वहीं हैं जिनने भोंसले बनाई है। आओ मीना, सुपा सीना.. का खेल। खेल ही तो है। फ़िर चारों तरफ़ इतनी चौंकी हुई आँखें क्यूँ? यह निगरानी क्यूँ? क्या है खेल में ऐसा? क्या खेल कोई घेरा है?

Bhonsle | मेरे लिए क्या है!

Bhonsle | मेरे लिए क्या है!

चारों तरफ गूँजता नफ़रत का शोर, उस शोर के नशे में डूब चुके लोग और इन सब के बीच मौन बैठी एक बूढ़ी जर्जर होती देह जो सूनी आँखों से यह सब देख रही है। वो भोंसले है, परंतु भोंसले कौन है? मेरे लिए तो भोंसले जवान होती नफ़रत और हिंसा के बीच बूढ़ी होती हमारी मनुष्यता है, हमारी आत्मा है। जिससे हम आँखें नहीं मिला पाते हैं, जिसकी आँखों में देख मानो हम खुद की मर चुकी आत्मा को आईने में देख लेते हैं।

Bhonsle | This film is about us

Bhonsle | This film is about us

बहुत सुंदर और बहुत जरूरी फिल्म है – भोंसले। शुरुआत में धीमी लग सकती है अगर ऐसे सिनेमा की आदत नहीं है पर तब भी प्लीज देखो- ये फिल्म आने वाले सालों में जो भीतर कुरेदेगी वो बेहद जरूरी है। और हाँ फिल्म देखते हुए घुटन महसूस होगी क्यूंकि director ने cinematography का use intentionally वैसा किया है।