निर्मल वर्मा की कहानी इतनी सम्पन्न है कि उसे नाटक में बदलने पर वो उतनी ही मुकम्मल रहती है जितनी कहानी रूप में। इनके तीन नाटकों की किताब – तीन एकांत पढ़ी है।
तीन एकांत में निर्मल वर्मा की तीन कहानियों का नाटकीय रूपांतरण है। तीनों नाटक solo act हैं। और तीनों में अभिनेता बात मंच पर किसी से कहना शुरू करता है पर कुछ ही देर में हम भूल जाते हैं कि मंच पर कोई और है – लगता है कि ये बातें हमसे कही जा रही हैं।
तीनों नाटकों में जो बोलने वाला है वो निर्मल वर्मा के हर पात्र की तरह अपने अतीत से इस वर्तमान में ऐसे धागों से जुड़ा हुआ है – जो हम कहीं ना कहीं अपने निजी जीवन में देखते हैं। पकड़ते हैं।
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पहला नाटक है – धूप का एक टुकड़ा
अगर सुख का मतलब है, कि हम अकेलेपन को खुद चुन सकें, लेकिन चुनना एक बात है, आदी हो सकना बिल्कुल दूसरी बात।
– निर्मल वर्मा
एक पार्क की ढलती दोपहरी जिसमे धूप के टुकड़े बचे हुए हैं। एक औरत जो उन टुकड़ों के पीछे भाग रही है। और उसकी बातें। पार्क के सामने एक चर्च है जिसमें कभी उसकी शादी हुई थी। और पार्क में एक मूक बूढ़ा जिसे वो ये सब बातें बताती है।
मोनोलॉग कब हमें अपनी कहानी लगने लगता है – पता ही नहीं चलता। चुनने की बातें, अतीत की बातें सब ऐसी लगती हैं कि अरे ये बातें तो हम अपने आप से अकेले में करते हैं। और यही इस नाटक की संपूर्णता है।
कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि मरने से पहले हममे से हर एक को यह छूट मिलनी चाहिए कि हम अपनी चीर-फाड़ खुद कर सकें। अपने अतीत की तहों को प्याज़ के छिलकों की तरह एक-एक करके उतारते जाएँ – आपको हैरानी होगी कि सब लोग अपना-अपना हिस्सा लेने आ पहुचेंगे, माँ-बाप, दोस्त, पति – सारे छिलके दूसरों के, आखीर की सुखी डंठल आपके हाथ मे रह जाएगी, जो किसी काम की नहीं, जिसे मृत्यु के बाद जला दिया जाता है, या मिट्टी के नीचे दबा दिया जाता है।
निर्मल वर्मा
अक्सर कहा जाता है कि हर आदमी अकेले मरता है। मैं यह नहीं मानती। वह उन सब लोगों के साथ मरता है, जो उसके भीतर थे, जिनसे वह लड़ता था या प्रेम करता था।
निर्मल वर्मा
दूसरा नाटक है – डेढ़ इंच ऊपर
आदमी बात कर सकता है और चुप रह सकता है, एक ही वक़्त में। इसे बहुत कम लोग समझते हैं।
निर्मल वर्मा
एक पब। रात। और एक अधेड़ आदमी जो अपने अतीत को लेकर बैठा है। वो दुखी नहीं है बस एक दूरी है उसमें सभी चीजों से।
वो नाजी जर्मनी का रहने वाला है और उसकी पत्नी एक rebel ग्रुप में थी। वो पूरी कहानी सुनाता है कि कैसे उसकी पत्नी को पकड़ गया फिर उससे पूछताछ और उसमे जो जीवन से संबंधित सच निकल के आते हैं वो अद्भुत हैं।
और हाँ, नाजी जर्मनी के बारे में सोचने पर मजबूर भी कर देती है।
हर आदमी को अपनी ज़िंदगी और अपनी शराब चुनने की आज़ादी होनी चाहिए… दोनों को सिर्फ़ एक बार चुना जा सकता है। बाद में हम सिर्फ उसे दुहराते हैं, जो एक बार पी चुके हैं, या एक बार जी चुके हैं।
निर्मल वर्मा
एक खेल में हारने के बाद आप दूसरे खेल में जीतने की आशा करने लगते हैं। आप यह भूल जाते हैं कि दूसरी बाजी की अपनी संभावनाएँ हैं, पहली बाजी की तरह अंतहीन और रहस्यपूर्ण।
निर्मल वर्मा
तीसरा नाटक है – वीकएंड
मैं अपना गुस्सा दबाकर उसके डर का कांटा बाहर निकालती हूँ, तब देखती हूँ, जैसे उसकी सारी आत्मा लहूलुहान है और मैं जल्दी से कांटे को वहीं दबा देती हूँ, जहाँ वह पहले था।
निर्मल वर्मा
एक लड़की जिस संबंध एक शादीशुदा आदमी से चल रहा है। जिसकी एक बच्ची है। उस लड़की को उस बच्ची से मिलने का कौतूहल है। वो प्यार करती है आदमी से। वो दोनों हमेशा ही वीकएंड पर मिलते हैं। और यही एक वीकएंड है जब वो सुबह जागी है और आदमी सो रहा है। और वो सोचती है पिछले हर वीकएंड के बारे में।
तो अगर कुछ सुंदर और हटके पढ़ना है तो तीन एकांत पढिए। पढ़ने के लिए लिंक नीचे दे रहा हूँ।
तीन एकांत – निर्मल वर्मा – Read Here
तब तक पढ़ते रहिए।
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