कुछ दिन होते हैं जब हम ये pinpoint नहीं कर पाते कि ये सपना है या हक़ीक़त। पूरा दिन ऐसा लगता है कि सपना है। सपने और असल जीववन के बीच की लकीर धूमिल (blurred) पड़ जाती है। और अगर ये कोई film बहुत भीतर तक महसूस करवा दे तो?
अच्छा एक बात और है – अगर आप creative field से हो तो बहुत बार होता है – हमारा असल जीवन हमारी कला में शामिल हो जाता है – कोई जानबूझकर करता है और कोई बिना जाने। ये हमारी कला के लिए तो बहुत अच्छा होता है लेकिन असल जीवन के जो लोग हैं? जिनका उस क्षण में उतना ही हिस्सा और हक़ है जितना हमारा – उन पर क्या असर होता है जब उनके असल जीवन का एक क्षण बिना उनकी इजाजत के हमने अपनी कला में शामिल कर लिया?
इन सब बातों को दिखाती है फिल्म – Nine. Nine 2009 की फिल्म है और इसमे हैं Daniel Day Lewis (अगर नाम नहीं सुना तो world cinema देखना छोड़ देना नहीं तो सबसे पहले जाकर search करना और कोई भी फिल्म देखना इनकी)।
कहानी क्या है? कभी आपने Fellini का नाम सुना है? नहीं!! ये भी search करना। Fellini world cinema के कुछ सबसे top के film-maker रहे हैं जो आज तक अपनी genius के लिए नये और पुराने film-makers के लिए inspiration हैं।
तो हुआ क्या असल ज़िंदगी में – Fellini बना चुके थे 8 फिल्म। और उन्हे 9वी फिल्म बनानी थी लेकिन उन्हे स्क्रिप्ट नहीं मिल रही थी। और producer वगैरह सब पैसा लगा चुके थे तो उन्होंने अपनी ही लाइफ पर एक फिल्म बनाई थी 1963 में – नाम था 8 1/2. (वो अलग post में बताएंगे)
तो इसी कहानी पर पहले बना था एक broadway play और फिर आई ये फिल्म।
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कहानी मे एक Italian director है जो बहुत famous है 1960s में उसकी groundbreaking cinema के लिए। उसने अभी तक जो फिल्म बनाई हैं वो हर फिल्म बहुत famous रही हैं बस पिछली दो छोड़ कर। जितने लोग उसकी controversial topics के लिए criticize करते हैं उतने ही उसे admire भी करते हैं।
उसकी फिल्म religion, sex, feminism, liberty, existentialism जैसे topics को छूती हैं जो कि 1960s में बड़ी बात थी।
खैर तो होता क्या है producer ने announce कर दिया कि भईया Guido Centinni बना रहे हैं नई पिक्चर। और शूटिंग शुरू है 10 दिन में।
अब Guido के पास idea नहीं है।
और भाईसाहब जैसे ही फिल्म शुरू होती है और जो उसके दिमाग के अंदर दिखाया जाता है कि कैसे वो अपनी ज़िंदगी की हर लड़की को स्टेज पर लता है इन्स्परैशन के लिए (muse) वो बहुत बहुत बहुत सुंदर है।
पर उसे idea नहीं मिलता।
तो ये फिल्म उसी कहानी की खोज है। हर कोई कह रहा है कि story बताओ लेकिन उसे खुद नहीं पता कि वो क्या बनाए।
ऊपर से उसे समझ नहीं आता कि कब असल जीवन चल रहा है और कब फिल्म चल रही है। एण्ड उसकी wife है जो पहले actress थी लेकिन शादी के बाद उसने film करना छोड़ दी हैं। कैसे Guido अपने निजी पल अपनी आर्ट में उसे करता है जो कि उसकी wife को गलत लगते हैं – ये सब है।
और फिर end.
फिल्म में एक dialogue है जो कि Guido कि costume designer उससे कहती हैं कि – कि तुम्हारे अंदर का जो बच्चा है वो film बनाता है। उसे मत छोड़ना। और movie में कहीं कहीं पर उसका past दिखाया जात है जहाँ वो छोटे रूप मे दिखता है।
तो एंड में क्या होता है Guido decide करता है कि मूवी बनाएगा और वो डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठता है जो कि crane पर है और तभी उसके बचपन वाला रूप आता है और उसकी गोद में बैठ जाता है और crane ऊपर उठती है सामने spotlight है और Guido की आवाज आती है – action.
और ये scene जो रोंगटे खड़े करेगा ना!! मतलब ग़ज़ब ग़ज़ब ग़ज़ब।
मुझे personally इसलिए पसंद आई क्यूंकि जो visual हैं film के – जो cinematography है – बहुत बहुत बहुत सुंदर। और हाँ अगर मन में आ रहा कि movie art-cinema है तो गलत सोच रहे हैं।
मूवी म्यूज़िकल है (और हमारे Bollywood को जो घमंड हैं film में गाने use करने का, वो इसे देखकर पलीज़ कुछ सीखें)। हाँजी फिल्म में गाने हैं। और एक चीज – Guido का दिमाग एक स्टेज और वो जब दिखता है – मजा आता है।
और ऐक्टिंग – Daniel Day Lewis को अभी तक का Greatest Actor कहते हैं। और ये बात आप performance देखकर जान जाओगे।
Also fun fact – मूवी की शूटिंग के दौरान Daniel Day Lewis ने अपना Green Room (जहाँ actors का मेकप होता है) 1960s के director के office की तरह बनवाया था और सबसे हर वक़्त Guido बनकर ही बात करते थे।
तो अगर कुछ बहुत ग़ज़ब देखना है जो सपने जैसा सुंदर लगेगा और मन, आत्मा और दिल तीनों गुदगुदा देगा तो भईया Nine देखो।
तब तक देखते रहिए।
Stills from Nine:
बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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