इससे पहले की पोस्ट में हमने Kunwar Narayan की कविताओं की कुछ पंक्तियाँ साझा की थीं। उसी कड़ी में कुछ और पंक्तियाँ ये रहीं।
Kunwar Narain | कुँवर नारायण | Top 10 सुंदर पंक्तियाँ
Kunwar Narayan की पंक्तियाँ
सत्य, जिसे हम सब इतनी आसानी से
अपनी-अपनी तरफ मान लेते हैं, सदैव
विद्रोही-सा रहा है।
सत्य पर की गई ये कुछ अनोखी बात मैंने पढ़ी थी तो बहुत सुख हुआ था।
दुर्भाग्य
कि मैंने वह समझना चाहा जो मैंने जिया।
क्या ये हम सबके साथ नहीं होता! हर चीज में हम अर्थ खोजते हैं- समझना चाहते हैं कि ये क्यूँ, क्या और कैसे – लेकिन कभी भी पूरी तस्वीर हाथ नहीं लगती।
कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब
अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,
हमारे चारों ओर नहीं।
कितना आसान होता चलते चले जाना
यदि केवल हम चलते होते
बाक़ी सब रुका होता।
दिक्कत हमेशा रही है विकल्प की – और वही फिर वरदान भी है।
बाक़ी कविता
शब्दों से नहीं लिखी जाती,
पूरे अस्तित्व को खींचकर एक विराम की तरह
कहीं भी छोड़ दी जाती है...
और यहाँ मैं निशब्द हो गया।
और यह एक जबरदस्त फौजी इंतजाम की
कामयाबी का पक्का सबूत है
कि बंदूक हाथ में लेते ही
हमें चारों तरफ दुश्मनों के सिर
अपने आप नज़र आने लगते।
पढ़ो। सोचो। पढ़ो। फिर सोचो। और फिर कुछ करें?
अजीब वक़्त है -
बिना लड़े ही एक देश-का-देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं की अधीनता!
अहम! अहम! कुछ तो आया होगा मन में? आए तो सोचना।
किसी का सीट बराबर जगह दे देना भी
हमें विश्वास दिलाता कि दुनिया बहुत बड़ी है।
ये बहुत सुंदर है। कैसे छोटी से छोटी बात में हम ये अर्थ निकाल सकते हैं कि दुनिया बहुत बड़ी है और दुनिया में बहुत तरह के लोग हैं।
कविता वक्तव्य नहीं गवाह है
कभी हमारे सामने
कभी हमसे पहले
कभी हमारे बाद
सच्ची कविता वो होती है जो समय को मात दे दे! और कला गवाह होती है कि जिस समय वो रचना की गई उस समय आस पास में क्या हो रहा था।
कि चाहे जितनी लापरवाही से चलो
कुछ-न-कुछ बच ही जाता ही बाल-बाल
काल की सम्पूर्ण चपेट में आ जाने से।
है ना? कुछ चीजें बन जाती हैं जो हमेशा रहेंगी – किसी ना किसी रूप में!
सविनय निवेदन है प्रभु(राम) कि लौट जाओ
किसी पुराण - किसी धर्मग्रंथ में
सकुशल सपत्नीक...
अबके जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे वाल्मीक!
और ये उन्होंने राम पर लिखा है। इसे पढ़ कर जो लगता है वो आस पास देख सकते हैं। कुछ बेहद भीतर जाकर चुभेगा। अगर चुभे तो आईए बात करते हैं।
हर बड़ी जल्दी को
और बड़ी जल्दी में बदलने की
लाखों जल्दबाज मशीनों का
हम रोज आविष्कार कर रहे हैं
ताकि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती हुई
हमारी जलदियाँ हमें जल्दी-से-जल्दी
किसी ऐसी जगह पहुंचा दें
जहाँ हम हर घड़ी
जल्दी-से-जल्दी पहुँचने की जल्दी में हैं।
और ये तो इस सदी की कह लो या इस वक़्त की बहुत बड़ी खूबी है या समस्या – ये तो खुद ही पहचाने।
तो ये थी Kunwar Narayan की कुछ और पंक्तियाँ। कैसी लगीं? बाकी पढ़ते रहिए।
बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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