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Kedarnath Agrawal – केदारनाथ अग्रवाल के प्रकृति प्रेम की झलकियां

Kedarnath Agrawal - केदारनाथ अग्रवाल के प्रकृति प्रेम की झलकियां

Kedarnath Agrawal जी की किताब के कुछ अंश आपने पहले पढे थे। जिसमें उनके सामाजिक दृष्टि पैनी होने की झलक साफ दिखती है।

केदारनाथ अग्रवाल जी की सामाजिक दृष्टि की झलकियां

उसी किताब से कुछ और कविताओं की झलक ये रही जिनमे उनके प्रकृति प्रेम की झलक मिलती है-

1.नदी के किनारे के पत्थरों को सबने देखा होगा। लेकिन इस नजर से देखने के कारण ही केदारनाथ अग्रवाल जी की कविता की सुंदरता मानी जाती है –

हैं कई पत्थर किनारे 
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!

2.केदारनाथ जी इन पंक्तियों में अपने अंदर की जुझारूपन को पानी के जरिए बता रहे हैं –

तेज धार का कर्मठ पानी, 
चट्टानों के ऊपर चढ़ कर,
मार रहा है घूँसे कस कर
तोड़ रहा है तट चट्टानी!

3.प्रकृति से प्रेम और समर्पण और वो इन सब चीजों को किस आदर से देखते थे वो यहाँ पता चलता है। जहाँ उन्होंने पेड़ों को हमारा अग्रज बता दिया है-

पेड़ नहीं, 
पृथ्वी के वंशज हैं,
फूल लिये,
फल लिये,
मानव के अग्रज हैं।

4.ये उनका प्रकृति प्रेम कहो या फिर प्रकृति के लिए आदर कि वो उसको मनुष्य से बढ़कर मानते हैं और वो यहाँ पर दिखता है –

आज नदी बिलकुल उदास थी, 
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसको नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।

5.धूप से प्रेम देखा है, जिसमें इतनी कोमलता हो। नहीं ना! केदारनाथ अग्रवाल जी कि कविता में दिखती है –

धूप नहीं, यह 
बैठा है खरगोश पलंग पर
उजला,
रोएँदार, मुलायम
इसको छू कर
ज्ञान हो गया है जीने का
फिर से मुझको।

6.अपने और नदी के प्रेम को इस तरीके से कहना अपने में अद्भुत है-

वह चिड़िया जो 
चोंच मार कर
चढ़ी नदी का दिल टटोल कर
जल का मोती ले जाती है
वह छोटी गरबीली चिड़िया
नीले पंखों वाली मैं हूँ
मुझे नदी से बहुत प्यार है।

7.दिन को कभी इस नजर से देखा है –

दायें-बायें 
सुबह-शाम : इन
कामरूप दो सुंदरियों के बीच
जवान दिन हैरान
युगों से
भरी पृथ्वी में तपता है।

8.केदारनाथ जी का नदियों से खास प्रेम था और वो बार बार उनकी कवितों में झलकता है। उसकी झलक –

दिन ने नदी को 
नदी ने दिन को
प्यार किया।
दोनों ने एक दूसरे को जिया,
एक दूसरे को जी भर कर पिया।
आदमी ने दिन को काटा
नदी के पानी को बाँटा।

9.दिन और रात का ऐसा विवरण मुझे पहले ऐसे नहीं मिला –

सूरज जनमा,
सुबह हुई।
सूरज डूबा,
शाम हुई।
रात.
अँधेरे की
संगत में,
बुरी तरह
बदनाम हुई।

10.शब्दों से पेंटिंग ऐसी होती है –

आकाश पीता है सामने खड़े कारखाने का
चिमनी-छाप सिगार।
धूप का धोखा
शहर के सिर पर
छाता ताने तना है ।

तो ये थी Kedarnath Agrawal जी की प्राकृतिक प्रेम की झलकियां। अच्छी लगें तो बताइए, बुरी लगें तो बताईए। बाकी पढ़ते रहिए। 

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