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मनोज ‘मुंतशिर’ – मेरी फ़ितरत है मस्ताना | Top 10

मनोज 'मुंतशिर' - मेरी फ़ितरत है मस्ताना | Top 10

आइए पहले आपका इन साहब से परिचय कर देते हैं। आप भले ही इनको नाम से उतना न जानते हों पर इनके लिखे गाने और डायलॉग आपने न सुने हों ऐसा नहीं हो सकता । वैसे तो इन्होंने बहुत सी फिल्मों में गीत लिखे पर जो हाल ही में सबसे प्रसिद्ध वो है “ केसरी ” फिल्म का “ तेरी मिट्टी ” और कमाल का गाना है।

आप अगर उसे सुनेगें तो एक बार आपके जज़्बात को हिला देगा, इसके अलावा इन्होंने बाहुबली (dialogue भी),एक विलेन, कबीर सिंह और रुस्तम जैसी कई फिल्मों के लिए गीत लिखे हैं। ये तो हो गया जनाब का परिचय जो कि हैं मनोज ‘मुंतशिर’ । अब एक शायर के रूप में ये क्या कमाल हैं आप नीचे खुद ही पढ़ लीजिये।

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हमने पढ़ी है इनकी किताब – मेरी फ़ितरत है मस्ताना और फिर जो कुछ हुआ है वो नीचे बता रहे हैं।

आजकल एक तो हर किसी को प्यार हो जा रहा है; खैर वो अलग मुद्दा है। पर जो कॉमन है आज के प्रेम संबंधों में वो है, मैं का हावी होना, हमारे अंदर अहँकार इतना आ गया है की सामने वाले की सुनना ही नहीं चाहते है। उसी पर मनोज जी ने ये शेर कहा है – 

तुम्हारे पास मैं फिर लौट आऊँ
कोई ऐसी वजह छोड़ी कहाँ है
तुम अपने आप से इतना भरे हो
मेरी खातिर जगह छोड़ी कहाँ है

आजकल प्रेमसंबंधों प्रेमियों का एक दूसरे को बाबू, बच्चा सोना कहना बड़ा आम हो गया है। पर जब आप इस शेर को पढ़ेंगे तो आपको एहसास होगा कि एक आदमी ने कितनी खूबसूरती से प्रेमी को खिलौना और अपने दिल को बच्चे की संज्ञा दी है।

तुम्हारे बाद दिल के साथ क्या-क्या होता रहता है
खिलौने खो गये इसके, ये बच्चा रोता रहता है।

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हालांकि हर इंसान को खुद में झांकना चाहिए अपनी नींव की गहराइयों के लिए पर एक शायर खुद जितना खंगाल ले उसके लिए उतनी ही बड़ी उपलब्धी होती है जो उनके शेर में साफ झलकती है।

आकाश छुपे हैं मुझमें कई, मैं कायनात का ज़रिया हूँ
मैं दरिया की इक बूँद नहीं, इक बूँद में पूरा दरिया हूँ

अगर आपने जीवन में कभी ऐसा महसूस किया है कि शायद यह जो आपके आसपास का माहौल है या जो लोग हैं वह शायद आपके अनुकूल नहीं है या आप उनके अनुकूल नहीं है तो आपके लिए क्या खूबसूरत शेर लिखा है

सनारों की ये बस्ती है, यहाँ क्या काम है मेरा
मैं लोहा हूँ, मैं लोहा हूँ, मुझे ले चल लुहारों में

ये पूरी बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल है आप उनकी क़िताब यहाँ से ख़रीद के पढ़ सकते हैं इसे।

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इस एक शेर में आपको एक आईना दिखेगा जो दो तस्वीर दिखायेगा एक तो समाज की और मनोज मुंतशिर के जीवन की।

जैसा बाजार का तकाजा है, वैसा लिखना अभी नहीं सीखा 
मुफ्त बँटता हूँ आज भी मैं तो, मैंने बिकना अभी नहीं सीखा
एक चेहरा है आज भी मेरा, वो भी कमबख्त कितना ज़िद्दी है
जैसी उम्मीद है ज़माने को, वैसा दिखना अभी नहीं सीखा

आपका तो नहीं पता पर ‛ मैं ’ जो बालक ये लिख रहा है वो बिल्कुल ऐसा ही बालक है जैसा इस शेर में है-

कोई खुदगरज़ियाँ देखे हमारे जैसे बच्चों की
अधूरी माँ के होंठों पर कहानी छोड़ दी हमने

निवाले माँ खिलाती थी, तो सौ नखरे दिखाते थे
नहीं है माँ ,तो सारी आनाकानी छोड़ दी हमने

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जो गाँव से दूर आये थे कमाने और फिर इतना कमा लिया की वापस जा ही नहीं पाए, उनके लिए पेश है ये शेर:-

गरीबी में नहीं बिकने दिया इक छोटा सा टुकड़
अमीरी में ज़मीनें खानदानी छोड़ दी हमने

कभी आपको ऐसा लगा है कि आपने सबके साथ भला किया है पर आपके साथ बुरा ही होता है या आप जब खुश होते हैं तो नई समस्या आजाती है तो आप इस शेर को समझ पाएंगे

जब भी खुशियाँ फली हैं मुझपे, मैंने पत्थर खाया है
मैं इनसान हूँ, पर मैंने पेड़ों का मुकद्दर पाया है।

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सपना टूटा है कभी बहुत बुरा होता है, लेकिन जानते हैं उस से भी बुरा तब होता जब आप उस टूटे सपने के साथ जीने लगते हैं। फिर आप एक टीस के साथ जीते है जो धीरे धीरे कुढ़न बन जाती है, उसी हालात में है शेर

ये कह के बादलों से मेरी आँख भर गयी
अब बरसो या न बरसो मेरी प्यास मर गयी
इक ख्वाब था जो पूरा न हो पाया उम्र भर
इक उम्र थी जो ख्वाब कि तरह गुजर गयी

आज के सामाजिक परिवेश में कितना सही बैठता है ये शेर

मेरे अन्दर काबिज़ है वो, मुझसे जुदा नहीं रहता
दाढ़ी टोपी और तिलक में मेरा खुदा नहीं रहता।

 

तो ये रहे उस किताब से कुछ शेर। अगर अच्छे लगें और पढ़ने का मन हो तो यहाँ से खरीद लो – सच्ची बता रहे, बहुत मजा आएगा। 

मेरी फ़ितरत है मस्ताना

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