परिचय :- Raghuvir Sahay – रघुवीर सहाय – हिंदी के जाने माने लेखक और एक सफल पत्रकार रहे थे। एक पत्रकार की छाप उनके लेखन में आपको हमेशा महसूस होगी। उन्होंने अपने समय में बहुत सी कवितायेँ, कहानियां, निबंध और नाटक लिखे।
उनकी एक कविता बहुत प्रसिद्ध है ‘ लोग भूल गए हैं’ इस कविता को 1984 का राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। अगर आप अच्छा साहित्य पढ़ने में दिलचस्पी रखते हैं इसे खोज के पढ़िए। ये उनके बारे में थोड़ी सी जानकारी है, उनके लेखन के बारे में और जानकारी के लिए आप यहाँ से पढ़ सकते हैं। आइये इनकी कुछ कविताओं से आपको मिलते हैं।
Raghuvir Sahay की TOP 3 कविताओं के अंश
पढ़िए गीता
बनिए सीता
फिर इन सबमें लगा पलीता
किसी मूर्ख की हो परिणीता
निज घरबार बसाइये।
ये कविता एक लड़की की कहानी बयां करती है, कि तुम पढ़ो -लिखो, खूब ज्ञान बटोरो फिर हुशियार बनो और फिर एक दिन आपके घरवाले (समाज का सहारा लेकर) आपकी पढ़ाई लिखाई में पलीता लगा देंगे मतलब बेकार कर देंगे और आपकी शादी किसी ऐसे घर में करवा देंगे जहाँ आपकी उस पढ़ाई लिखाई की कोई कीमत नहीं होगी और ना ही कोई कद्र होगी।
ये 1952 की कविता है जब feminism की बात नहीं होती थी। उस समय एक लेखक ने समाज पर जो तंज (ताना) कसा है देखने लायक है। आज भी आपके रिश्तेदारी या आस-पड़ोस में ये लड़की आपको देखने को मिल जाएगी ।
होंय कँटीली
आँखें गीली
लकड़ी सीली, तबियत ढीली
घर की सबसे बड़ी पतीली
भरकर भात पसाइये
ऊपर वाली कविता का ही आगे का हिस्सा है की आपकी पढाई लिखे में पलीता तो लग ही चुका है। अब जो होगा वो ये है, अब आप गीली लकड़ियां जला के चूल्हे के सामने बैठ के बड़े -बड़े बर्तन भर के खाना बनाओ (उस समय चूल्हे पर ही बनता था) और रोते जाओ बस यही आपका जीवन है ये तब का था.
अब में बस इतना फर्क है की अब आप अपनी पढाई लिखाई सब ताख में रख के (भूल जाओ ) पति और उसके परिवार का ध्यान रखो और अपनी इच्छओं की मौत पर रोते जाओ यही अब तुम्हारा जीवन है।
तुममें कहीं कुछ है
कि तुम्हें उगता सूरज, मेमने, गिलहरियाँ, कभी कभी का मौसम
जंगली फूल-पत्तियाँ, टहनियाँ-भली लगती हैं
आओ उस कुछ को हम दोनों प्यार करें
एक दूसरे के उसी विगलित मन को स्वीकार करें।
( विगलित = ढीला, पिघला, शिथिल )
अंग्रेजी में एक कहावत है opposites attract मतलब हमें अपने से विपरीत सोच (पसंद) वाले लोग आकर्षित करते हैं। जबकि असल में ऐसा नहीं होता हम प्रेम में उस इंसान को ढूँढ़ते हैं जिससे हमारी सोच और पसंद मिलती हो, उसी से इज़हार करते हैं प्यार का, लेकिन वो इज़हार इतनी खूबसूरती से हो सकता है.
आप सोच नहीं सकते कि आओ हम दोनों एक दूसरे की उस पसंद और सोच से प्यार करें, वो भी उसी विगलित ( ढीले या शिथिल ) मन के साथ मतलब सारी कमियों के साथ।
हँसो पर चुटकुलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हों जो किसी ने सौ साल पहले दिये हों
बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों
जैसे गरीब पर किसी ताकतवर की मार
जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता
उस गरीब के सिवाय
और वह भी अक्सर हँसता है
हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जायें
उनसे हाथ मिलाते हुए
नज़रें नीची किये
उनको याद दिलाते हुए हँसो
कि तुम कल भी हँसे थे।
समाज की दुर्दशा पर ये बड़ी गज़ब कविता है जिसका टाइटल है “ हँसो हँसो जल्दी हँसो ”। एक पत्रकार ही ऐसा व्यंग लिख सकता है। ये आपने ना जाने कितनी बार देखा होगा बहुत से उदाहरण आपके आस पास होंगे हालाँकि राजनितिक नज़र से ज्यादा सटीक है, पर हर रसूखदार(बड़ा आदमी) के सामने हम लोग यही तो करते हैं हर वो काम की ये खुश रहे हमसे फिर उसके लिए किसी गरीब की विवश्ता (मजबूरी) पर हँसना ही क्यों न पड़े बड़ा आदमी खुश होना चाहिए।
तो ये थे Raghuvir Sahay की कविताओं के टॉप 3 अंश।
अगर आपको अच्छे लगें, फिर और पढ़ने का मन करे तो एक किताब है, जिसका नाम है – प्रतिनिधि कविताएँ (रघुवीर सहाय)। ये मँगवा लो। मजा आ जाएगा।
Link ये रहा –
प्रतिनिधि कविताएँ – रघुवीर सहाय
मैं लेखक नहीं हूँ पर लेखक का किरदार बहुत पसंद है मुझे, तो जब भी मैं इस किरदार से ऊब जाता हूँ तो लेखक का लिबास पहन कर किरदार बदल लेता हूँ।
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