ठीक 7 साल बाद हो जाएगा 2027. अब सोचो आज से 93 साल पहले यानि कि 1927 में एक मूवी बनी हो – थीम हो science fiction. Dystopian society. उसमें robots हों। एक ऐसा future वाला शहर दिखाया गया हो जिसमें multilayerd transport है trains का। बिल्डिंग्स के बीच से transport के लिए हवाई जहाज उड़ रहे हैं। धरती के नीचे पूरा एक शहर है बहुत सारे लेवेल्स पर और धरती के ऊपर भी। और इस पूरे शहर का एक मालिक है। अजीबोगरीब machines हैं।
चलो ये सब सोचना तो ठीक भी है, लेकिन सोचो 1927 में ये सब दिखा देना वो भी बहुत अच्छे लेवल पर। और वो भी silent फिल्म में। अगर ये ग़ज़ब बात ना लगे तो भगवान जाने क्या लगेगा।
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एक डायरेक्टर हैं – नाम है Fritz Lang. अनुराग कश्यप की dvd लाइब्रेरी में उनके सबसे favourite और उन्होंने सबसे पहले Fritz Lang को ही recommend किया। उनका कहना है कि आज की सारी मूवीज फ्रिट्ज़ लँग की मूवीज से originate होती हैं। और भाईसाहब Metropolis देखने के बाद इंकार तो नहीं कर पाओगे।
एक तो silent फिल्म। सारा खेल visuals से ही होना है। और चलो मन में हम लोग सोच भी लेंगे यार क्या बोरियत होगी, लेकिन जो सेट design है ना और जो fast screenplay है वो बांधे रखेगा। 1927 के दौर में इस लेवल का set design करके इस तरीके से दिखा देना और वो भी convincingly – बहुत ग़ज़ब बात है।
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कहानी –
कहानी ऐसी futuristic dystopian society की है जो एक ही आदमी के द्वारा कंट्रोल होती है। वो अपने बनाए नये Tower of Babel के सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर रहकर कंट्रोल करता है। धरती के नीचे हैं eternal gardens और worker city – जहाँ रहते हैं सारे workers.
वर्कर्स का काम है नीचे की सारी मशीन को चलाना जिससे पूरा शहर जिसका नाम है Metropolis चलता रहे। तो एक तरीके से हाथ हैं वर्कर्स और उनसे काम करवाने वाला दिमाग है कन्ट्रोलर Joe Frederson. शहर बहुत आधुनिक है – यानि modern है। multilayered transport के रास्ते हैं। बहुत ऊंची ऊंची buildings हैं। हवाई जहाज से local transport हो रहा है।
अब होता क्या है – कि वर्कर्स दुखी हैं – कि यार 10 10 घंटे की शिफ्ट है और हमारे मालिक हम पर ध्यान नहीं देते। उधर मालिक का बेटा है। वो पड़ जाता है एक लड़की के चक्कर में और जीवन में पहली बार worker city देखता है – उसका दिमाग खराब। उसके सामने एक आदमी मशीन संभालते संभालते गिर पड़ता है और मशीन फट जाती है। उसे दिखता ये तो नरक है भईया।
वो दौड़ के जाता है अपने बाप के पास। बाप उसे नकार देते। लड़के का दिमाग खराब। कहता – I will change the system. उधर मालिक को पता चलता है कि worker city में revolution की तैयारी चल रही।
अब एंट्री होती है -एक scientist की। उनका अलग angle है। उन्हे हमारे हीरो की माँ से मोहब्बत थी, यानि कि हीरो के बाप यानि की metropolis के controller से दुश्मनी। पर दिखाने के लिए मदद तो करनी है। तो वो पेश करते हैं – एक रोबोट – machine man. जो उनकी हर problem का solution है।
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तो अब कैसे रोबोटवा यानि machine man उनकी problem सॉल्व करता है। revolution कैसे आता है? अच्छा हाँ हीरो को प्यार हो जाता है revolution कि हेड – एक लड़की से। तो उसका की होता है – 1927 में शहर तबाह होना दिखाया गया है और देखने में बड़ा ग़ज़ब लगता है ये। तो देखना।
तो भाईसाहब कुछ कतई हटके देखना है जो आँखें चौड़ी करने पर मजबूर कर दे तो Metropolis देखो। subtitle की चिंता मत करना, dialogue vise साइलन्ट है। music का बड़ा ग़ज़ब use किया गया है मजा आ जाएगा। emotional rollercoaster पर ले जाएगी फिल्म। और visual – अद्भुत।
मूवी youtube पर है – लिंक ये रही।
कुछ अच्छा देखना है तो ये देखो। तब तक देखते रहिए। पढ़ते रहिए। मूवी कैसी लगी ये बताना। बोलो ठीक है।
बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
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