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Last Year at Marienbad | The Game of Memory | EkChaupal

Last Year at Marienbad | The Game of Memory | EkChaupal

सखी इस फिल्म के बारे में सबसे पहले निर्मल वर्मा के एक निबंध में पढ़ा था जब उन्होने इसके screenwriter Robbet Grillet से अपने interview के बारे में लिखा था। फिर French New Wave पढ़ने के तहत Allan Resnais के बार में पढ़ा तो और मन हुआ।

याद है हम अपने मन के बारे में कितनी बातें करते हैं। कि ये एक ऐसी पहेली है जिसे समझना बहुत मुश्किल है। क्या हो कि कोई आपके सामने तस्वीर, शब्द और संगीत के सहारे पूरा मन और वो कैसे काम करता है दिखने लगे। ये फिल्म असल में हमारी यादों के बारे में ही है। या फिर हम कैसी किसी याद को सँजो कर रखते हैं। या फिर कैसे हम भविष्य देखते हैं। बुनते हैं। हम असल में याद बुनते हैं। रेशे रेशे से। Allan Resnais एक बहुत अच्छा खेल खेलते हैं हमारे साथ इस फिल्म में जिसके अंत में मैं एक दर्शक के रूप में बस ये सोचता रहता हूँ कि अगर मेरा मन इतना धोखेबाज है और ये धोखा सामने है तो क्या करूँ? ये फिल्म एक कविता है जिसकी हर लाइन आप अपने दिमाग के सहारे लिखते हैं। सच में? इस फिल्म में मैं passive audience रह ही नहीं पाया। और शायद यही Allan चाहते थे।

एक आदमी एक औरत से एक होटल में मिलता है और उसे याद दिलाता है कि वो पिछले साल यहीं मिले थे। वो एक एक डीटेल और उनके बीच हुई एक एक बात बताता है। पर औरत को कुछ भी याद नहीं। वो उससे कभी नहीं मिली। पूरी कहानी बस यही है। अब इसमे आश्चर्य ये है कि ये बातें वो अलग अलग जगह, अलग अलग मौसम में अलग अलग तरीके से कहता है। दोहराता है। और उसकी डिटेल्स जो कुछ वर्तमान में हो रहा है (जो वर्तमान हमें लगता है) उससे प्रभावित होती रहती हैं। औरत के साथ साथ हमें भी लगता है कि वो झूठ बोल रहा है और कहानी गढ़ रहा है। लेकिन फिर वो एक सबूत पेश करता है और पूरा पासा पलट जाता है। इसमें अचंभा ये है कि फिर वो आगे पूरी कहानी भूल जाता है। उसे आगे की डिटेल्स नहीं पता।

आदमी जब भी औरत को पिछले साल के बारे में बताता है तो उसकी याद में औरत अपनी परछाई शीहसे ए नहीं देख पाती। आस पास के लोग तब याद में जमें हुए लगते हैं। मूर्तियाँ जिसके बीच बस वो दोनों इंसान हैं। जैसे सब इंतज़ार कर रहे हैं किसी घटना का किसी बात की फिर ज़िंदा होकर अपना जीना शुरू कर देंगे। हमारी याद में बसे हुए लोग ही ज़िंदा होते हैं और बाकी सब मूर्तियाँ? क्या मैं याद कर सकता हूँ कि जब तुमसे मिलने आया था… ऐसे ही यादों के सवालों में उलझी पड़ी ये कहानी सवालों को और उजागर करती है। तुम देखना… 

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