साथी, अचल मिश्रा की dhuin देखी कल मैंने भी। देखने के बाद जब तुम्हारा पत्र आया (Dhuin | First Letter) तो मेरे आँख के कोने में एक आँसू था शायद। कोई ठीक तभी अँधेरे में मुझे युद्ध की खबर सुना के गया था और मेरे भीतर पंकज का चलना रुका नहीं था। मैंने तुमसे कहा कि समझा नहीं सकती क्या लग रहा है। बाद में यह लिखा था –
“Ink blots all over me. Three. One. Two. Three. Did I ever tell you that clouds are nothing but ink blots swimming in sky?”
उन तीन धब्बों में से एक धब्बा धुईं शब्द का था। मैं बादलों की नहीं असल में धुँध की बात कर रही थी। यह फ़िल्म देखने के बाद लगा बादलों से ज़्यादा स्याह और घनी धुँध होती है। ठीक किसी धब्बे सी। वो जमा रहती है बहुत देर तक, बैठ जाती है एक जगह, हिलती नहीं कमबख्त! उसमें लिपटा रहता है पंकज का पूरा शहर हर समय। और पंकज खुद।
पता, पंकज उन लोगों में से है जो बहुत चलता है। और फ़िल्म में दो बहुत ही सुंदर मूविंग शॉट्स हैं जिसमें पंकज के साथ साथ कैमरा चल रहा होता है। या यूँ कह लो हम चल रहे होते हैं। उन दो पलों पर मुझे लगा मैं उसका चलना समझ सकती हूँ। पता जब वो चल रहा था अकेला धुँध में तो मैंने अपना शरीर भींच लिया था, वो अपनी गर्दन और बाल बार बार छू रहा था और मैं उसकी इस छुअन को अपने पूरे शरीर में फैलता हुआ महसूस कर रही थी। अजीब बेचैनी। मन करा मैं भी उठ कर चलने लग जाऊँ। अपनी बाजु को छुऊँ या गर्दन मसलने लग जाऊँ। मैं उलटी कर देना चाहती थी। मैंने तुमसे कहा था। अभी कुछ ही दिन पहले तो हम kiarostami की फिल्मों के बारे में बात कर रहे थे। मुझे घिन सी होने लगी। मुझे लगा पंकज असल में मुझे देख रहा है। और वो सवाल! उस सवाल पर मैंने हम सब को शर्मसार पाया। उलटी का पहला खयाल उसी से आया था।
अभी तुम्हारा पत्र पढ़ा। कल फ़िल्म देखते हुए तुम याद आ रहे थे जब ट्रैन के शोर के बीच पंकज यूट्यूब से रोने की एक्टिंग सीखने की कोशिश कर रहा था। (कितनी राहत मिलती ना अगर वो सच में रो रहा होता! लेकिन वो तो रोने का अभिनय कर रहा था। और हम उसके अभिनय के आगे ठगे से साँस बाँधे उसे देख रहे थे।) लगा पंकज को और इस फ़िल्म को तुमने मुझसे कहीं ज़्यादा करीब से जिया होगा। साथी जाने कितने ऐसे धुँध में लिपटे हुए शहर हैं अपने देश में। और जाने कितने ऐसे धुँध में अकेले चलते हुए पंकज। शायद इन सब को पंकज की तरह गहरी धुँध में भी हवाईजहाज हमेशा अपने शहर से दूर, अपने सपनों के शहर में जाते हुए दिखते होंगे। और तभी उनके बगल में बैठे बंबई से आये लोग कह देते होंगे कि धुँध की वजह से बंबई की उड़ानें बंद हैं। तुमने कोई दूसरा हवाईजहाज देखा होगा।
Achal Mishra’s Dhuin was showcased in Jio MAMI Mumbai Film Festival
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“मुझे शब्द बहुत पसंद हैं।” –
Bio माँगा तो कहा कि बस इतना ही लिख दो। छोटा, सटीक और सरल। Instagram bio में खुद को किताबी कीड़ा बताती हैं और वहाँ पर किताबों के बारे मे लिखती हैं। इनको आप Medium पर भी पढ़ सकते हैं।
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