केदारनाथ सिंह को पढ़ना अपने आप में एक नई अनुभूति है। केदारनाथ सिंह जनसाधारण कवि होने के साथ-साथ प्रकृति के कवि हैं। आप केदारनाथ सिंह जी को जितना अधिक पढ़ेंगे खुद को प्रकृति के उतना करीब महसूस करेंगे। आपको अपने आस-पास की समस्त निर्जीव चीज़ें सजीव समान प्रतीत होंगी। जीवंत प्रतीत होंगी। अपने आस-पास की वस्तुओं के प्रति आपका नज़रिया ऐसे बदलेगा, मानो लगेगा कि वो आपसे कुछ कहना चाहती हों बात करना चाहती हों।
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केदारनाथ सिंह की कविताएँ जितनी ज़्यादा साधारण भाषा में लिखी गयी हैं उतनी अधिक गूढ़ हैं। और गूढ़ता ऐसी, जैसे किसी कुएं में झांककर देखो तो पाताल दिख जाए। उनकी कविताओं के बिम्ब किसी नवजात के हाथों खींचे हुए रेखाओं की तरह हैं। केदार जी की कविताएँ बहुरूपी हैं। उनकी किसी एक किताब में आप दुनियाभर की व्याख्या पढ़ सकते हैं। जितनी सरलता और आत्मीयता से केदार जी किसी वस्तु-आदि का परिपेक्ष रख सकते हैं वैसा कोई दूसरा शायद नहीं रख सकता।
मैं उनकी कविताओं से बहुत ज़्यादा प्रभावित हुआ हूँ।
केदारनाथ सिंह की कविताएँ बोलते पेड़ हैं, कलरव करती नदियाँ हैं, चहचहाते पक्षी है, उछलते-कूदते जानवर है , उगता और अस्त होता सूरज है। केदारनाथ की कविताएँ किसी नवजात का प्रथम रुदन तो किसी वृद्ध का अंतिम अट्टहास हैं।
मैं उनकी कविताओं में से कोई पसंदीदा नहीं चुन सकता लेकिन “विद्रोह” उनके द्वारा लिखी मेरी सबसे पसंदीदा कविता रहेगी, हमेशा।
उनके द्वारा लिखी एक कविता : बुद्ध के बारे में सोचना
बुद्ध के बारे में सोचना – केदारनाथ सिंह
सर्दियों की एक रात में
बुद्ध के बारे में सोचते हुए
मुझे लगा, यह करुणा नहीं
अपने कम्बल के बारे में सोचना है
बार-बार कम्बल के बाहर निकलते
और मुड़ते हुए अपने घुटनों के बारे में
अपने पहले प्रेम
और हिमपात के बारे में सोचना है
बुद्ध के बारे में सोचना
हिमपात में बुखार के बारे में
पृथ्वी पर
पानी के भविष्य के बारे में सोचना है
बुद्ध के बारे में सोचना…
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राजनीतिक मुद्दों, कविताओं, उपन्यासों, गीत-संगीत के चमड़े का बना हुआ पदार्थ हूँ। जहाँ ये सभी मिल जाते हैं, चिपक जाता हूँ जाकर। लिखने- पढ़ने में खास रुचि है। आधा इंजीनियर, फुल ग्रैजुएट हूँ। बाकी सब इस quote से समझिए-
“समस्त विचारधारा से अलग, एक जर्जर मकान है मेरा
जिसकी छत से टपकती रहती हैं, संवेदनाएँ। “
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