Devashish Makhija’s Cycle | A Letter
इस फिल्म के बाद मैं देवाशीष का शुक्रिया नहीं कहूँगा कि उन्होंने ये फ़िल्म बनाई। मैं बस उनके गले लगकर माफ़ी मांगूंगा कि उन्हें ये फिल्म बनाने की ज़रूरत पड़ी। और जिस ढंग से बनाई है, उसके लिए नमन और शुक्रिया दोनों।
इस फिल्म के बाद मैं देवाशीष का शुक्रिया नहीं कहूँगा कि उन्होंने ये फ़िल्म बनाई। मैं बस उनके गले लगकर माफ़ी मांगूंगा कि उन्हें ये फिल्म बनाने की ज़रूरत पड़ी। और जिस ढंग से बनाई है, उसके लिए नमन और शुक्रिया दोनों।
लगभग तेईस मिनट की एक शॉर्ट फिल्म है Cheepatakadumpa नाम से देवाशीष मखीजा की। ये देवाशीष मखीजा वहीं हैं जिनने भोंसले बनाई है। आओ मीना, सुपा सीना.. का खेल। खेल ही तो है। फ़िर चारों तरफ़ इतनी चौंकी हुई आँखें क्यूँ? यह निगरानी क्यूँ? क्या है खेल में ऐसा? क्या खेल कोई घेरा है?
Manoj Muntashir (मनोज मुंतशिर) को कौन नहीं जानता!! तेरी मिट्टी जैसे गाने के बाद उनका नाम शोहरत की बुलंदिया छूने लगा। उनकी किताब आई थी ‘मेरी फितरत है मस्ताना’।
The Myth of Sisyphus एक essay है। Albert Camus ने अपनी Absurdity की philosophy को इस essay में पूरा समझाया है। ये 1942 में आया था और उनकी हर कहानी और उपन्यास से संबंध रखता है। इस essay के जरिए Camus जीवन, उसके अर्थ, उसकी अर्थहीनता, कैसे जीना चाहिए और क्या हो रहा है जैसे बहुत से सवालों के भीतर झाँकते हैं।
Andrei Tarkovsky एक Russian filmmaker हैं। इन्हें दुनिया के greatest filmmakers में गिना जाता है। बीते दिनों इनकी फिल्म Solaris, The Steamroller & The Violin, Andrei Rublev, Mirror, Stalker और The Sacrifice देखी हैं और बार बार देखी हैं। उनसे जो कुछ महसूस हुआ है उस पर संवाद।
The Book of Questions, Pablo Neruda की किताब है जिसमें उन्होंने 316 poetic सवाल पूछे हैं। अपने में उलझे, अपने में ही सुलझे, ये सवाल कुछ अलग ही कहते हैं। उसी किताब में से कुछ जादुई सवाल यहाँ पेश हैं।
‘धुंध से उठती धुन’ – निर्मल वर्मा की किताब है। जिसमें उनकी डायरी, उनके यात्रा वृतांत के दौरान लिखी हुई बातें, संस्मरण और बहुत सी चीजों पर एकांत में मंथन है। इस किताब में जिन बातों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, उन्हें समझने की कोशिश में कुछ संवाद।
क्या हम कभी भी वैसा लिख पाते हैं जो हमने लिखने से पहले सोचा था कि हम ऐसा लिखेंगे? आखिर हमारा असल लेखन कौन सा होता है – जो हम सोचते वक़्त लिखते हैं या जो हम लिखते वक़्त सच में लिखते हैं? पर इस सवाल का यह जवाब कितना सही है कि असल में दोनों ही अपने अपने समय(क्षणों) का सत्य होते हैं और क्यूँकि सत्य क्षणिक होता है इसलिए दोनों ही अपने होने में पूरे और जीवित होते हैं उस वक़्त।
अचानक मुझे लगा
ख़तरों से सावधान कराते की संकेत-चिह्न में
बदल गई थी डाक्टर की सूरत
और मैं आँकड़ों का काटा
चीख़ता चला जा रहा था
कि हम आँकड़े नहीं आदमी हैं।
तुम्हें steamroller और violin का signficance समझ आया? दोनों चीजें बिल्कुल अलग और उलट हैं लेकिन यहाँ वो एक जगह मिल रही हैं। यह वो moment है जब artist की life और normal आदमी की life एक दूसरे को cross करती हैं। जब वो आदमी बच्चे का violin डरते हुए अपने हाथ में लेता है। Steamroller चलाने वाले आदमी के हाथ में violin टूट सकता है इसलिए वो उसे बहुत हल्के से पकड़ता है। और वो बच्चा उसका steamroller चलाता है। पूरी तरह से grease में लथ-पथ हो जाता है। दो अलग संसारों का आपस मे मिलना।