कला और क्या है सिवाय इस देह मन आत्मा के
बाकी समाज है
जिसको हम जान कर समझ कर
बताते हैं औरो को, वे हमें बताते हैं

रघुवीर सहाय

चौपाल – चारों ओर से खुली हुई जगह जहाँ बहुत से लोग बैठते हों और बात चीत,विचार विमर्श आदि करते हों।

ये साहित्य की चौपाल है। स्वागत है किसी का भी, कुछ अच्छा पढ़ा हो- कविता, कहानी, सूक्ति; कुछ भी जिससे आप खुद से या अपने आस पास के समाज से परिचित हुए हों तो यहाँ पर उस पर संवाद करिए। अभी हाल में व्योमेश शुक्ल का interview देखा तो खयाल आया कि कविता, लेखन पर बातें कितनी कम हो गई हैं! तो तब इस ‘चौपाल’ ने जन्म लिया। यहाँ बातें होंगी, नकारना है कविता को नकारिए लेकिन पहले पढिए, उस पर बात कीजिए।

हमारे अनुभव से चौपाल की सबसे अच्छी चीज थी कि यहाँ सब होता है। लड़ाई झगड़ा, घरेलू बातें, सामाजिक मुद्दे, राजनीतिक मुद्दे, घर की छोटी मोटी समस्याओं से लेकर बड़े से बड़ा मजाक एक बरगद के पेड़ के नीचे हो जाता है। तो साहित्य भी तो यही है, हम सब साहित्य के अलग अलग मोहल्ले, देश से निकाल कर आए हैं। आइए, एक बरगद के नीचे बैठकर थोड़ी बातचीत हो जाए।

ये वो चौपाल है जहाँ पर किताबों में जो आप lines underline करते हैं ना, हम उन पर बात करते हैं और जो फिल्म्स हम देखते हैं और चाहते हैं कि हमारे दोस्त देखें तो जैसे उन्हे recommend करते हैं वैसे यहीं करते हैं। बस यही यात्रा है।

यात्रा में स्वागत है। चौपाल में स्वागत है।