विनोद कुमार शुक्ल- कविता से लंबी कविता | Review | Top 10 बिम्ब
पाँच मिनट बाद खिड़की खोलने पर
वही खड़ा हुआ दृश्य,
खड़े हुए दृश्य में
गुजरते हुए लोग
कि उस पेड़ के पास
अब कोई आदमी नहीं
जैसे वह जान-बूझकर पेड़ छोड़कर
चला गया कहीं
पाँच मिनट बाद खिड़की खोलने पर
वही खड़ा हुआ दृश्य,
खड़े हुए दृश्य में
गुजरते हुए लोग
कि उस पेड़ के पास
अब कोई आदमी नहीं
जैसे वह जान-बूझकर पेड़ छोड़कर
चला गया कहीं
Before Sunrise (1995) (trailer), Before Sunset (2004) (trailer), Before Midnight (2013) (trailer)- ये तीनों फिल्म romantic genre को redefine करती हैं। ये वैसे तो सबको ही देखनी चाहिए लेकिन खास उन लोगों की favourite लिस्ट में जरूर जुड़ जाएंगी जिन्हे romantic फिल्म्स की आदत है।
निर्मल वर्मा की एक और चीज बहुत झकझोर देती है – उनका यथार्थ को लेकर नजरिया। यथार्थ और सत्य उनके लिए दो अलग अलग चीज़े हैं और वो convince भी कर देते हैं पढ़ने वाले को यथार्थ समय की एक अलग ही धारा में बहता है जो हमारे निजी जीवन से कुछ भिन्न है। बहुत ही बारीक और खोजबीन वाली नजर से देखेंगे तो जान पाएंगे कि जो हम जी रहे हैं वो यथार्थ से कोसों दूर है। उनके लेखों में यथार्थ की झलक कहीं पर चमकती धूप सी मिलती है।
निर्मल वर्मा ने कहा है – “जब हम कहानी में लिखते हैं, वह सितंबर की एक शाम थी – मैं उस सूनी सड़क पर चला जा रहा था, तब इस पंक्ति के लिखे जाने के एकदम बाद कुछ ऐसा हो गया है, जो शाम से बाहर है, उस सूनी सड़क से अलग है। वह ‘मैं’ उस व्यक्ति से अलग हो गया है, जो उस शाम सड़क पर चल रहा था। उस वाक्य का अपना एक अलग एकांत है, जो उस शाम की सूनी सड़क से अलग है। शब्दों ने उस शाम को मूर्त करने की प्रक्रिया में अपनी एक अलग मूर्ति गढ़ ली है, जिसकी नियति उस व्यक्ति की नियति से भिन्न है, जो ‘मैं’ हूँ।”
Okay. Voyage of Time is something really amazing, extraordinary and utterly different.
ब्रह्मांड कैसे शुरू हुआ, कैसे बना, इसका भविष्य क्या है – ये सारे questions हम लोगों को बहुत fascinate करते हैं। तभी शायद Nat Geo पर कोई documentary आए universe से रिलेटेड तो आँख बांधे देखते रहते हैं। ये सारे सवाल हमारे जहन में शुरुआत से रहे हैं और शायद रहेंगे।
Whiplash एक ऐसी फिल्म है, जिसे आप हर साल in-fact हर महीने देख सकते हैं। ज़िंदगी में कुछ भी achieve करना है, कोई सपना है जिसे पूरा करना चाहते हैं, तो ये फिल्म जरूर देखिए और जल्द से जल्द देखिए।
मैं तो कहूँगा मरने से पहले हर आदमी को एक बार तो ये फिल्म जरूर देख लेनी चाहिए, फिर चाहें वो फिल्म्स देखता हो या ना देखता हो।
केदारनाथ अग्रवाल जी हिन्दी साहित्य के कुछ सबसे सुंदर कृतियों वाले कवियों में से एक हैं। इनकी कविताओं में प्रकृति का जो विवरण होता है वो बहुत सुंदर है। बहुत से लेखकों ने उन्हे किसानी कवि की पदवी भी दी है।
Indian फिल्म्स देख कर कई बार मन में बहुत सारे सवाल उठते हैं। Film है तो एक creative field ही, art form. लेकिन अगर आप only for the sake of art कुछ भी, कैसे भी CGI डाल दे रहे हैं (उदाहरण – कलंक का bull fight scene) तो सवाल तो उठेंगे!
लेकिन आज हम जिस फिल्म के बारे में बात करेंगे, वो एक film की सारी technicalities पर खरी उतरती है।
गीत चतुर्वेदी जी ने अपने interview में कहा है कि विनोद कुमार शुक्ल हवा में सरलता से चलने वाले कवि हैं और व्योमेश शुक्ल ने लिखा है – “ज़िंदगी कितनी कम विनोद कुमार शुक्ल है।” और फिर आप जब एक बार इनके संसार में कदम रखते हैं तो आप जमीन से दो इंच ऊपर ही चलेंगे। अभी- अभी विनोद कुमार शुक्ल जी की किताब कविता से लंबी कविता किताब पढ़ी है और इस समय जिस zone में हूँ उसको केवल विनोद कुमार शुक्ल के संसार को जानने वाला ही समझ सकता है।
अभी दो दिन पहले मैंने नीलेश मिश्रा जी द्वारा संचालित डॉ कुमार विश्वास का Slow interview देखा तो उसमें सबसे ख़ूबसूरत एक पंक्ति सुनी “ संवेदनाओं के व्यापार में संवेदनाएं धीरे धीरे कारोबार बन जाती हैं ” ।
मझे बहुत ही ख़ूबसूरत और एक दम सत्य लगी ये लाइन कि हम लोग जाने-अनजाने अपनी भावनाएं और अपनी अनुभूति को बेचने लगे हैं। हर व्यक्ति एक न एक स्तर पर ये कर रहा है – चाहे फिर वो क्रिएटिव लोग हों या हम जैसे सामान्य आदमी। कुछ हद तक ये ठीक भी है पर उसका दायरा कितना हो, ये तो तय करना होगा ना!