Laal Singh Chaddha | An Appreciation | EkChaupal

Laal Singh Chaddha is a 2022 Indian adaptation of famous film Forrest Gump. Atul Kulkarni adapted it from the original screenplay by Eric Roth. The film stars Aamir Khan as the titular character.

सखी, मैंने लाल सिंह चड्ढा (Laal Singh Chaddha) देखी। मुझे याद है मैंने कहा था कि इसे दोबारा बनाने की क्या जरूरत है जब इसका आरिजिनल version पहले से है और इतना अच्छा है। फिर इसे रिपीट क्यूँ करना? कहीं ऐसा तो नहीं कि एक फ़ेमस कहानी को भुनाने की कोशिश हो। और शायद हो भी। लेकिन कुछ टूटा है भीतर। सखी, इस फिल्म को देखने के दौरान एक दम से समझ आया कि सरल कहानी को बार बार कहना क्यूँ जरूरी है? कहानी सरल है। बहुत सीधी सी। सीधे से आदमी की। जिसे ज्यादा दुनियादारी नहीं आती। वो एक काम को वैसे ही करता है जैसा उससे दूसरे कहते हैं। पूरे मन से। बिना किसी छलावे के। पर फिर इस कहानी को दोबारा देखने पर भी वो क्यूँ महसूस हुआ जो अभी हो रहा है। असल में हमें कौन ज़िंदा रखे हुए है – कहानी। मैं अभी क्राफ्ट या दूसरे सवालों की बात कर ही नहीं रहा। शरीर कैसा भी हो। अभी बात आत्मा की है। इस कहानी को बार बार कहने की जरूरत है। अलग अलग रूपों में। और अगर बार बार कही जा रही है तो…

पता नहीं। मैं इसको रामायण के लेंस से देखने की कोशिश कर रहा हूँ। हमें पता है रामायण बहुत पुरानी है। सबको ये कहानी पता है। पर फिर भी हर बार हर रूप में हम रामायण की कहानी को मौका देते हैं। हमें सब कुछ पता है। बात क्राफ्ट की भी नहीं है। हाँ, स्पेशल effects, रूप, form, platform प्रभावित करता है पर असल में लालच तो उस कहानी को सुनने का है न? क्यूँ? क्यूंकी उस कहानी में कुछ बहुत सरल है। कुछ बहुत सीधा है जो सीधे हमसे जुड़ता है। जिससे थोड़ा सा जीवन सरल दिखता है। उसमें आशा दिखती है। ऐसा ही शेक्सपियर के नाटकों के साथ है। शेक्सपियर के जो नाटक अभी तक ज़िंदा हैं उनका क्या कारण है? क्या कारण है वही कुछ कहानियाँ बार बार हम अलग अलग भाषा, रूप में सुनते रहते हैं, देखते रहते हैं। हाँ, उसके बाद हम उसके रूप के आधार पर उसे नकार सकते हैं लेकिन कहानी देखने का लालच तो वही है कि कहानी में क्या होगा? कौए और कंकड़ की कहानी सबने सुनी है पर हर बार उसे सुनने पर याद आता है कि ये कहानी क्यूँ जरूरी है!!

तो लाल सिंह चड्ढा (Laal Singh  Chaddha) या फिर forrest gump ऐसी ही एक कहानी है। कहानी का form कैसा था, क्या चीज़ें adapt हो पायीं, नहीं हो पायीं, से ज्यादा जरूरी है बात करना कि ये कहानी कितनी अच्छी है। और इसके लिए इसे देखा जाना चाहिए! भले उसके बाद आप नकार दो। दूसरी बातें बाद में हैं। इस कल्चर में जब हम कहानियों को वैसे भी बहुत रिपीट कर रहे हैं क्या लाल सिंह चड्ढा एक अच्छा विकल्प नहीं देती कि कम से कम उन्होने एक ऐसी कहानी तो चुनी जो इस जीवन को जीने में थोड़ी और आशा देने का काम करती है। मार काट, लड़ाई झगड़े, toxic कहानियों से बहुत बेहतर है ये कहानी। और इसका repetition. क्या यहाँ पर हम ये नहीं पुच सकते कि अगर हम कॉपी कर भी रहे हैं तो किन चीजों का कर रहे हैं? क्या यही सवाल Aristotle अपनी Poetics में नहीं पुछते – selection of imitation!!

तो मुझे अच्छा लगा कि ये कहानी फिर एक बार कहने की कोशिश करी गयी है। इस समय जो माहौल है और जिस तरीके की ज़िंदगी हम लोग जी रहे हैं, और जिस तरीके की फिल्में हम देख रहे हैं उसमें अगर एक फिल्म ऐसी कहानी कहने की कोशिश करती है जो बहुत साधारण है और अंत में आपके भीतर जीवन और अपने आस पास के लोगों के प्रति थोड़ा प्रेम करने की इच्छा दे जाती है तो क्या बुरा है? कहीं ऐसा तो नहीं Cancel Culture में हम कुछ ऐसा खो रहे हैं जो जरूरी है। क्यूंकी जहां से मैं देख रहा हूँ – हम आज इस समय ऐसे हैं (जो कुछ भी अच्छा और बुरा है) क्यूंकी हमने कुछ खास कहानियाँ बार बार कही और सुनी हैं। और भविष्य भी बनेगा तो इस बात पर हम कौनसी कहानी सुनने और कहने की इच्छा रखते हैं। तो इस मामले में मुझे Laal Singh Chaddha बहुत पसंद आई है। तुम भी एक बार देख लेना।

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