इब्ने इंशा उर्दू शायरी में हिन्दी डालने के लिए मशहूर थे। और उनकी शायरी में प्रेम की बातें खूब रही हैं – खासकर नज़मों में। सच, कल्पना और प्रेम ये तीनों का गजब mixture मिलेगा इब्ने इंशा जी की शायरी को पढ़कर।
अभी हाल ही में उनकी प्रतिनिधि कविताओं की किताब खत्म की है।
उसमें से top 10 शेर यहाँ दे रहा हूँ –
कूचे को तेरे छोड़कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे, पर्बत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा
मैंने ये शेर लगभग एक साल पहले instagram पर कहीं पढ़ा था और तब भी वही अहसास हुआ था जो अभी लिखते हुए हो रहा था। ये प्रेम की अभिव्यक्ति है और बेहद सुंदर।
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पूछो खेल बनानेवाले, पूछो खेलनेवाले से
हम क्या जानें किसकी बाजी, हम जो पत्ते बावन हैं
इसे पढ़कर हर बार ताली बजाने को दिल करता है। ये चीज हर किसी ने जीवन के किसी पहलू में महसूस की होगी जहाँ खेल से दूर हटकर सब देखने का मजा ही अलग है।
हमसे नहीं रिश्ता भी, हमसे नहीं मिलता भी
है पास वो बैठा भी, धोखा हो तो ऐसा हो
ऐसे धोखे वाला इंसान हर किसी की ज़िंदगी में मिलता है और जाने अनजाने ऐसे धोखे वाले इंसान हम भी कभी ना कभी तो बन ही जाते हैं।
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इक भीख के दोनों कासे(प्याले) हैं, इक प्यास के दोनों प्यासे हैं
हम खेती हैं, तुम बादल हो, हम नदिया हैं, तुम सागर हो
एक खूबसूरत रिश्ता है इन सब में और उस खूबसूरत रिश्ते को निजी ज़िंदगी से जोड़कर लिखना – ये इब्ने इंशा जी की खूबसूरत लेखनी का कमाल है।
हक़ अच्छा पर उसके लिए कोई और मरे तो और अच्छा
तुम भी कोई मंसूर हो जो सूली पर चढ़ो, खामोश रहो
इसके बारे में कुछ नहीं कह सकते- ये समाज पर कटाक्ष है और जिसको लगेगा, उसको बड़ा तगड़ा लगेगा।
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एक ही जल के रूप थे सारे, सागर, दरिया, बादल, बूंद
ना उड़ता बादल ये जाना, ना बहता दरिया समझा
इसको धर्म से जोड़ना है तो धर्म से जोड़ के समझ हो, निजी तौर पर जोड़ना हो तो निजी तौर पर जोड़ कर पढ़ लो। मजा वही मिलेगा।
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ कैस मिलेगी दिल के दौलतखाने में
जिसने तमाशा देखी है तो तुरंत कुछ याद आएगा जिसने नहीं देखी वो देख लो जाके – लाइन समझ आ जाएगी एक दम से।
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इस बस्ती में इतने घर थे, इतने चेहरे, इतने लोग
और किसी के घर पर पहुंचा? ऐसा होश दीवाने में
ये त्रासदी है या तारीफ – पता नहीं। इससे दुख को जोड़ कर भी पढ़ लो और चाहों तो सुख से जोड़कर भी।
अब तुझसे किस मुंह से कह दें, सात समंदर पार न जा
बीच की इक दीवार भी हम तो फांद न पाए ढा न सके
महसूस किया है कि बहुत देर बाद किसी के पीछे भागने की इच्छा होती है लेकिन उससे पहले कुछ करने का कोई जज्बा नहीं?
आप ही आप पिटे जाते हैं अपने प्यादे अपने फ़ील (शतरंज के हाथी)
हम क्यूँ खेलें इस बाजी में हाथ हमारे जीत न मात
ये इशारा है समझ का। और समझदार को इशारा काफी।
बस यही थे। अच्छे लगे हों तो बताइए, बुरे लगे हों तो बताइए। कुछ और पसंद हों तो वो बताईए।
बाकी मिलते हैं।
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बिखेरने की आज़ादी और समेटने का सुख – लिखने की इससे बेहतर परिभाषा की खोज में निकला एक व्यक्ति। अभिनय से थककर शब्दों के बीच सोने के लिए अलसाया आदमी।
Lekin sher ka kuch matlab samajh me nahi aya…! Kya kehna chah re hain pehle sher me ..!